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________________ ललित वाङ्मय चन्द्रोदय वर्णन [ नवम सर्ग] तथा मधुपान और सुरत वर्णन [ दशम सर्ग ] देकर माघ के शिशुपालवध के अनुसार महाकाव्य की परम्परा का निर्वाह करते हुए ११वें सग से पुनः कथाक्रम को जारी किया है। चैत्र के महीने में राजा उग्रसेन की पुत्री राजीमती रैवतक पर्वत पर क्रीड़ा करने आती है और वहाँ वह नेमिनाथ को देख कामवेदना से पीड़ित हो जाती है। इधर राजा समुद्रविजय ने युवराज कृष्ण को नेमि के विवाह के लिए रूपवती राजीमती को माँगने के लिए भेजा। कृष्ण ने उग्रसेन से कन्यादान के लिए प्रस्ताव किया जिसे उसने सहर्ष स्वीकार किया। यह सुन राजीमती जो परमानन्द हुआ। स्वीकृति पाकर कृष्ण लौट आये [११वाँ सर्ग], विवाह की तैयारियाँ हुई । नेमिनाथ ने सजधजकर रथ पर चढ़ विवाह के लिए प्रस्थान किया । राजधानी में खूब उत्सव मनाया गया। उधर राजीमती को भी खूब सजाया गया। दोनों ओर आनन्द-लहर छा गई । नेमि उग्रसेन के नगर पहुँचे [ १२वाँ सर्ग] । ज्योंही वे रथ से उतरनेवाले थे कि उन्होंने विवायज्ञ में बंधे हुए पशुसमूह के चीत्कार को सुना। उन्होंने नेत्र फाड़कर समीप की वाड़ी को देखा जिसमें पशुगण करुण क्रन्दन कर रहे थे। उन्होंने अपने सारथि से इतने एक साथ बँधे हुए पशुओं का क्या प्रयोजन है. यह पूछा । उसने कहा कि आपके विवा हमें आये हुए अभ्यागतो के निमित्त विशेष पाकविधि के लिए इनकी 'वसा' का प्रयोग होगा। यह सुनते ही उन्हें भवान्तर की स्मृति हो आई और वे समागत बन्धुवर्गों की अभिलाषा के प्रतिकूल बोले कि मैं इस परिग्रह (विवाह ) को न करूँगा और परमार्थसिद्धि के लिए प्रयत्न करूँगा। उन्होंने हिंसा के भयावह रूप को लोगों के सामने रखकर अपने पिछले जन्मों का वर्णन किया [१३वाँ सर्ग]। उन्होंने समस्त वैभव को छोड़ रैवतक ( गिरिनार) पर्वत पर जाकर मुनिव्रत ले लिया और घोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप उन्हें केवलज्ञान ( पूर्ण ज्ञान) हुआ [ १४वाँ सर्ग]। इसके बाद भब्य जीवों के कल्याण के लिए समवसरण सभा द्वारा उपदेश देना प्रारम्भ किया। राजीमती ने भी जिनदीचा लेकर अपने कर्मबन्धन काटे (१५.८७)। अनेक व्यक्तियों ने उनसे मुनिव्रत स्वीकार कर लिया और कुछ लोगों ने श्रावकवत। सामान्यतय काव्यों का उद्देश्य अनुराग की शिक्षा देना है पर जैन काव्यों में यह बात पूर्णतया चरितार्थ नहीं होती है। यह काव्य अनुरक्ति से विरक्ति की ओर जाने की शिक्षा देता है । रचयिता एवं रचनाकाल-निर्णयसागर प्रेस, बम्बई की काव्यमाला में प्रकाशित नेमिनिर्वाणकाव्य में सर्गान्त पंक्तियों में इस काव्य के रचयिता का नाम वाग्भट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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