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________________ ४६६ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास असर हो सका है। इनमें सरलता से किसी प्रकार के संशोधन और परिवर्तन की भी गुंजाइश नहीं और यदि वह हुआ भी है, जैसा कि राष्ट्रकूट के ताम्रपत्रों में बहुधा देखा जाता है, तो शीघ्र ही पकड़ में आ जाता है। अभिलेखों में प्रायः समकालीन घटनाओं का उल्लेख रहने से उनकी प्रामाणिकता में सन्देह नहीं होता। भारतीय इतिहास की अनेक समस्याओं को सुलझाने में इन लेखों से बड़ी सहायता मिली है। जहाँ साहित्य चुप है या कम प्रकाश डालता है वहाँ ये लेख हमें निश्चित सूचना देते हैं। यहाँ हम जैन अभिलेख साहित्य की कुछ विशेषताएँ बतलाते हैं। ___जैन अभिलेख साहित्य विविध उपादानों पर उत्कीर्ण मिलता है, जैसे शिला, शिलानिर्मित मन्दिर, स्तम्भ, गुफा, पाषाण, धातुप्रतिमा, चरण, देवली, स्मारक, शय्यापट, ताम्रपट एवं यंत्र आदि पर उत्कीर्ण तो मिलता ही है पर कतिपय लेख दीवालों एवं काष्ठपट्टिकाओं पर काली स्याही से लिखे हुए भी मिले हैं जो साढे पाँच सौ वर्ष जितने प्राचीन हैं। काली स्याही के अक्षरों का पाषाण पर ज्यों के त्यों रह जाना आश्चर्य की बात है । ये लेख आज तक विद्यमान रहकर प्राचीन स्याही के टिकाऊपन की ही साक्षी देते हैं। इसी तरह पुस्तक के परिवेष्टन पर सुई से कढ़ा हुआ भी जैन लेख (बीकानेर से ) मिला है। वैसे ही बुहलर को सिल्क पर स्याही से छपा ग्रन्थ और पिटर्सन को कपड़े पर स्याही से छपा ग्रन्थ मिला है पर सुई से अंकित लेख नया ही प्रतीत होता है। जैन अभिलेखों की प्रकृति समझने के लिए उन्हें हम अनेक दृष्टियों से विभक्त कर सकते हैं, जैसे उत्तर भारत के, दक्षिण भारत या पश्चिम भारत के लेख, सम्प्रदायगत दिगम्बर और श्वेताम्बर लेख, विस्तृत दृष्टिकोण से राजनीतिक एवं धार्मिक लेख । पर वास्तव में इनके दो ही भेद करना ठीक है : एक तो राजनीतिक जो शासनपत्रों के रूप में हैं या अधिकारीवर्ग से सम्बद्ध हैं और दूसरे सांस्कृतिक जो जनवर्ग से सम्बद्ध हैं। इनमें से राजनीतिक एवं अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित लेख प्रायः प्रशस्तियों के रूप में होते हैं। इनमें राजाओं की विरुदावलियाँ, सामरिक विजय, वंशपरिचय आदि के साथ मन्दिर, मूर्ति या मुनि आदि के लिए भूमिदान, ग्रामदानादि का वर्णन होता है। इस प्रकार के लेखों में कलिंग नृप खारवेल का हाथीगुम्फा शिलालेख (प्रथम-द्वितीय ई० पूर्व), रविकीर्तिरचित चालुक्य पुलकेशि द्वितीय का शिलालेख (६३४ ई० ), कक्कुक का घटियाल प्रस्तर लेख (वि० सं० ९१८), कवि श्रीपालविरचित कुमारपाल की बड़नगरप्रशस्ति (वि० सं० १२०८), हथंडी के धवल राष्ट्रकूट का बीजापुर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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