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ऐतिहासिक साहित्य लेख (९९७ ई०), विजयकीर्ति मुनिकृत विक्रमसिंह कछवाहा का दुबकुण्ड लेख (१०८८ ई०), जयमंगलसूरिविरचित चाचिग चाहमान का सुन्धाद्रि लेख
आदि अनेक प्रशस्तिलेख ही हैं। इन प्रशस्तियों में कई का महत्व तो इतना है कि कतिपय राजशाखाओं का परिचय केवल इन जैन प्रशस्तियों से ही हुआ है, जैसे उड़ीसा के हाथीगुम्फा से प्राप्त शिलालेखों से खारवेल और उसके वंश का, हथंडी के लेख से वहाँ के राष्ट्रकूटों का, ग्वालियर के सासबहू शिलालेख से कच्छवाहों की ग्वालियर शाखा का और दुबकुण्ड लेख से वहाँ के कच्छवाहों की शाखा का।
जनवर्ग से सम्बन्धित लेखों का क्षेत्र बहुत विस्तृत है । ये लेख अपनी धार्मिक मान्यता के लिए भक्त एवं श्रद्धालु पुरुष या स्त्रीवर्ग द्वारा लिखाये गये हैं। ऐसे लेख १-२ पंक्ति के रूप में मूर्ति की चौकियों पर तथा कुटुम्ब एवं व्यक्ति की प्रशंसा में उच्च कोटि के काव्य के रूप में भी पाये जाते हैं। इस प्रकार के अनेक लेख उत्तर भारत में मथुरा, आबूपर्वत, गिरनार, शQजय आदि तीर्थों से तथा दक्षिण भारत में श्रवणबेलगोला प्रभृति स्थानों से मिले हैं। इनसे अनेक जातियों के सामाजिक इतिहास और जैनाचार्यों के संघ, गण, गच्छ तथा पट्टावली के रूप में धार्मिक इतिहास के अतिरिक्त सांस्कृतिक एवं राजनीतिक इतिहास का परिचय मिलता है। इन लेखों में प्रायः मूर्तियों, धर्मस्थानों और मन्दिरों के निर्माण का काल अंकित रहता है, जिससे कला और धर्म के विकासक्रम को समझने में बड़ी सहायता मिलती है और सामाजिक स्थिति का परिज्ञान, जैसे एक देश से दूसरे देश में जैन कब कैसे फैले और वहाँ जैनधर्म का प्रसार अधिकाधिक कब हुआ, भी हो जाता है। अनेक भक पुरुषों और महिलाओं के नाम भी इन लेखों से ज्ञात होते हैं जो कि भाषाशास्त्र की दृष्टि से बड़े महत्त्व के हैं। ९वीं शताब्दी के बाद के अनेक लेखों में अधिकांश नाम अपभ्रंश और तत्कालीन लोकभाषा के रूप को प्रकट करते हैं।
जैनों का अभिलेख साहित्य प्राचीन समय से अर्वाचीन समय तक किसी एक भाषा की परिधि में नहीं बधा रहा। उसमें प्राकृत, संस्कृत, मिश्र संस्कृत, कन्नडमिश्र संस्कृत, कन्नड, तमिल, मराठी, गुजराती और हिन्दी भाषा का भी प्रयोग हुआ है। दक्षिण के कुछ लेख तमिल में और अधिकांश कन्नडमिश्रित संस्कृत में हैं। दक्षिण भारत से संस्कृत भाषा में लिखे ऐसे महत्त्व के लेख मिले हैं जो काब्य के सुन्दर नमूने हैं। उनमें चालुक्य पुलकेशि की एहोले प्रशस्ति, राष्ट्रकूट गोविन्द के मन्ने और कडब से प्राप्त लेख, अमोघवर्ष का कोन्नर शिला
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