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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
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जैतुगिदेव के समय मालवा में हुए मुस्लिम आक्रमण का उल्लेख मिलता है - ( म्लेच्छैः प्रतापागतैः ) ।
तीर्थमाला-सम्बन्धी अन्य रचनाओं में जिनप्रभसूरिकृत विविधतीर्थकल्प, अंचलगच्छीय महेन्द्रसूरि ( सं० १४४४ ) कृत तीर्थमालाप्रकरण, धर्मघोष के शिष्य महेन्द्रसूरिकृत तित्थमालाथवण ( तीर्थमालास्तवन ) एवं धर्मघोषकृत तीर्थमालास्तवन का संक्षिप्त परिचय इस बृहद् इतिहास के चतुर्थ भाग में दिया गया है ।
गुजराती, राजस्थानी आदि भाषाओं में तीर्थयात्राओं के विवरण प्रस्तुत करनेवाले कई ग्रन्थ लिखे गये हैं । विजयधर्मसूरि ने प्राचीनतीर्थमालासंग्रह प्रकाशित कराया है । वि० सं० १७४६ में शीलविजय द्वारा रचित तीर्थमाला और ब्र० ज्ञानसागरकृत तीर्थावली भी उल्लेखनीय है ।
भारतीय भूगोल' के अनुसन्धान में इन तीर्थमालाओं से पुराणगत तीर्थमाहात्म्यों की तरह बहुत सहायता मिल सकती है ।
विज्ञप्तिपत्र :
वर्षाकाल में श्वेताम्बर जैन पर्युषण पर्व के अन्तिम दिन सांवत्सरिक पर्व मनाते हैं, उस दिन परस्पर क्षमायाचना एवं क्षमादान किया जाता है । इस अवसर पर दूरवर्ती गुरुजनों को जो क्षमापत्र भेजे जाते थे, उन्हें खमापणा या. विज्ञप्ति - पत्र कहते हैं। गुजरात में इसे टीपणा कहते हैं । श्वेता० सम्प्रदाय के एक वर्ग के आचार्य श्री पूज्य कहलाते हैं । उन्होंने इस प्रकार के पत्रलेखन का विशेष विकास किया । पहले ये पत्र खमापणा के लिए लिखे जाते थे पर पीछे स्थानीय जैन संघ, जिसे धर्मप्रभावना के लिए किसी आचार्य या मुनि को अगले वर्ष चातुर्मास कराने की उत्कण्ठा होती थी, उन्हें आमन्त्रित करने के लिए प्रार्थनापूर्ण निमन्त्रण पत्र या विनन्तिपत्र के रूप में विज्ञप्ति-पत्र का उपयोग करने लगा । ऐसे विज्ञप्ति - पत्रों का उद्गमस्थान गुजरात- काठियावाड़ था पर धीरे-धीरे राजस्थान से बंगाल तक के क्षेत्र में इनका प्रसार हो गया ।
पहले ये मोटे कागज पर लिखे जाते थे जो १० या १२ इञ्च चौड़ा होता था पर पीछे तो इतने लम्बे होने लगे कि उनमें से एक वि० सं० १४६६ का १०८ हाथ का मिला है। इसी तरह सं० १८९६ का
बीकानेर से
श्री अगरचन्द नाहटा का एतद्विषयक लेख देखें ।
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