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________________ ऐतिहासिक साहित्य ४६१ तारउर ( तारापुर ) से वरांगादि का मोक्ष जाना लिखा है पर वरांगचरित के अनुसार वे मुक्त नहीं हुए, सर्वार्थसिद्धि को गये हैं । गाथा ८ में तुंगीगिरि से राम, हनुमान् आदि का मोक्ष जाना लिखा है पर उत्तरपुराण के अनुसार ये सब सम्मेद शिखर से मोक्ष गये हैं । प्रभाचन्द्र ( १२वीं शती) के क्रियाकलाप में संस्कृत निर्वाणभक्ति संगृहीत है, प्राकृत निर्वाणभक्ति या निर्वाणकाण्ड का संग्रह नहीं है । प्रभाचन्द्र के कथनानुसार संस्कृत भक्तियाँ पादपूज्य ( १ ) स्वामीकृत हैं। पर ये पादपूज्य या पूज्यपाद कौन हैं ? लिखा नहीं । अन्य स्रोतों से भी उक्त लेखक द्वारा रचित होने की पुष्टि नहीं होती । पं० आशाघर ( १३वीं शती) के क्रियाकलाप में प्रभाचन्द्र के क्रियाकलाप की अधिकांश भक्तियाँ संगृहीत हैं पर उन्होंने उनके कर्ताओं के सम्बन्ध में कोई बात नहीं लिखी । आशाधर के क्रियाकलाप में प्राकृतः निर्वाणभक्ति की केवल पाँच ही गाथाएँ दी गई हैं। शेष गाथाएँ उसमें छूटी हुई सी लगती हैं। यद्यपि इन दोनों भक्तियों के रचे जाने का ठीक समय अब तक नहीं मालूम फिर भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि ये दोनों कवि आशाघर से पहले के अर्थात् लगभग ६ - ६३ सौ वर्ष पहले के निश्चित हैं । १३वीं शती में विविध तीर्थों की परिचायिका एक अन्य कृति 'शासनचतुस्त्रिशिका " मिलती है जिसमें २६ तीर्थस्थानों और उनकी प्रभावशाली जैन प्रतिमाओं का वर्णन मिलता है । इसमें कुल ३६ पद्य हैं जो अनुष्टुभ् मान से ८४ श्लोक जितने हैं । पहला पय अनुष्टुभ् है और अन्तिम प्रशस्तिपद्य मालिनी छन्द में है । शेष पद्य विषयवस्तु के प्रतिपादक शार्दूलविक्रीडित छन्द में हैं। सभी शार्दूलविक्रीडित छन्दों के अन्तिम चरण का द्वितीयार्ध 'दिग्वाससां शासनम्' से समाप्त होता है । इसके रचयिता अपने समय के प्रसिद्ध आचार्य मदनकीर्ति हैं जो दिग० विशालकीर्ति के शिष्य थे । राजशेखरसूरि ने अपने सं० १४०५ में रचित प्रबन्धकोश में इनके जीवन पर 'मदनकीर्तिप्रबन्ध' नामक एक प्रबन्ध लिखा है । मदनकीर्ति की उपाधि 'महाप्रामाणिक - चूड़ामणि' भी थी। इसकी रचना धारानगरी में की गई थी । लेखक कवि पं० आशाघर के समकालीन थे । यह कृति ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्व की है। इसमें परमारनरेश १. पं० दरबारीलाल न्यायाचार्य द्वारा सम्पादित एवं वीर सेवा मन्दिर, सरसावा से सन् १९४९ में प्रकाशित; चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ० ४०३-४०५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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