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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ग्रन्थों में भी विस्तार से दिया गया है । इस बात का उल्लेख हम विविध प्रसंगों में कर आये हैं। इन पर स्वतंत्र रचनाएँ भी लिखी गई हैं। इस विषय का सबसे प्राचीन ग्रन्थ हमें धनेश्वरसूरि का 'शत्रुजयमाहात्म्य' (१३वीं शती का पूर्वार्ध) मिला है। इसका परिचय तीर्थ-माहात्म्य-विषयक कथाओं में हम दे आये हैं। दिगम्बर सम्प्रदाय के लेखकों ने भी १३वीं शती में कुछ तीर्थमालाओं का प्रणयन किया है। उनमें प्रथम उल्लेखनीय छोटी-छोटी दो भक्तियाँ हैं : पहली प्राकृत निर्वाणभक्ति या निर्वाणकाण्ड और दूसरी संस्कृत निर्वाणभक्ति ।' प्राकृत निर्वाणभक्ति या निर्वाणकाण्ड में चौबीस तीर्थकर एवं अन्य ऋषिमुनियों के निर्वाणस्थानों का निर्देश कर वहाँ से मुक्ति पानेवालों को नमस्कार किया गया है। निर्वाणकाण्ड में केवल १९ गाथाएँ मिलती हैं। इसकी अनेक प्रतियाँ मिलती हैं, उनमें गाथाओं की संख्या एक-सी नहीं है। कहीं-कहीं गड़बड़ भी है । निर्वाणकाण्ड के अन्त में कहीं-कहीं आठ गाथाएँ और भी लिखी मिलती हैं 'अइसयखेत्तकण्ड' (अतिशयक्षेत्रकाण्ड ) नाम से। परन्तु लगता है कि वह जुदा ही है । भाषाकार पं० भगवतीदास ने इन आठ गाथाओं का अनुवाद ही नहीं किया है। दूसरी संस्कृत निर्वाणभक्ति में ३२ पद्य हैं। इसके पहले २० पद्यों में केवल महावीर के पाँचों कल्याणों का वर्णन है और फिर आगे के १२ पद्यों में कैलास, चम्पापुर, गिरनार, पावापुर, सम्मेदशिखर, शत्रुजय का उल्लेख मात्र करके अन्य निर्वाणस्थानों के नाम मात्र दे दिये हैं। पहले के २० पद्यों को पढ़कर तो मालूम होता है कि वे एक स्वतन्त्र स्तोत्र के पद्य हैं जिनके अन्त में उसके पढ़नेवालों को नरलोक-देवलोक के सुख भोगकर मोक्षपद प्राप्त होना बतलाया है। दोनों भक्तियाँ स्वतन्त्र रचनाएँ हैं । प्राकृत निर्वाणकाण्ड में पश्चिम भारत के कुछ ऐसे तीर्थों के नाम हैं जो संस्कृत निर्वाणभक्ति में नहीं हैं और उसमें वर्णित कुछ तीर्थों के नाम प्राकृत निर्वाणकाण्ड में नहीं हैं। इससे ज्ञात होता है कि दोनों भक्तियाँ विभिन्न कालों की रचनाएँ हैं और सम्भव है कि इनके कर्ता एक. -दूसरे की रचना से अपरिचित रहे हों। प्राकृत निर्वाणकाण्ड में वर्णित कई तीर्थों से मोक्षगमन करनेवाले महापुरुषों का समर्थन या तो प्राचीन शास्त्रों से नहीं होता या विपरीत बैठता है। यथा १. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ४२२-५२३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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