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________________ ऐतिहासिक साहित्य ४५९ बलात्कारगण की एक प्राकृत भाषा में भी पट्टावली मिलती है जिसे नन्दिसंघ-बलात्कारगण-सरस्वतीगच्छ की पट्टावली कहा जाता है । काष्ठासंघ-माथुरगच्छ-पट्टावली: यह ५३ संस्कृत पद्यों की पट्टावली है जिसके २१ पद्यों में काष्ठासंघ के प्राचीन पट्टधरों का नामांकन कर मध्यकालीन माथुरगच्छ की माधवसेन (१३वीं शती का पूर्वार्ध) से प्रारम्भ होनेवाली परम्परा का पद्य संख्या २२ से विस्तार. पूर्वक वर्णन किया गय है जो अन्तिम पट्टधर मुनीन्द्रकीर्ति (सं० १९५२) तक जाकर समाप्त हुआ है। इसके रचयिता का नाम अज्ञात है। यह एक अच्छी काव्यात्मक कृति है। काष्ठासंघ-लाडबागड-पुन्नाटगच्छ-पट्टावली : यह संस्कृत गद्यात्मक कृति है। इसमें उल्लिखित आचार्यों में महेन्द्रसेन ( १२ शता० का उत्तरार्ध) पहले ऐतिहासिक व्यक्ति प्रतीत होते हैं। इन्होंने त्रिषष्टिपुरुषचरित्र लिखा था और मेवाड़ में क्षेत्रपाल को उपदेश देकर चमत्कार दर्शाया था। इनके पहले अंगशानी आचार्यों के बाद क्रम से विनयधर से लेकर केशवसेन तक १६ आचार्यों का उल्लेख है तथा महेन्द्रसेन की परम्परा के त्रिभुवनकीर्ति (१६वीं शती) तक का वर्णन है। तीर्थमालाएँ: भारतीय अन्य धर्मों की भांति जैनों के भी अपने तीर्थ हैं जो उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक फैले हुए हैं। उनके दर्शन वन्दन के लिए प्राचीन समय से ही जैन संघपति और मुनिगण समारोहपूर्वक लम्बी-लम्बी यात्राएँ करते थे और उनकी यात्राओं का विवरण तथा तीर्थों का परिचय लिख डालते थे। इन यात्राओं और तीर्थों का परिचय बड़े-बड़े पुराण एवं चरितात्मक १. जैन सिद्धान्त भास्कर, भाग १, पृ० १०३.१०७; भट्टारक सम्प्रदाय, पृ०. २१३-२४७. २. श्री मा० स० महाजन, नागपुर के संग्रह में; भट्टारक सम्प्रदाय, पृ० २४८. २६.. १. प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ में 'जैन साहित्य का भौगोलिक महत्व' के लेखक श्री अगरचन्द नाहटा ने तीर्थमाला-विषयक प्रकाशित सामग्री का परिचय दिया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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