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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
पउमचरियम्, देवगुप्त के सुपुरुषचरित, हरिवर्ष के हरिवंशोत्पत्ति, सुलोचनाकथा, राजर्षि प्रभंजन का यशोधरचरित आदि अनेक कवियों और रचनाओं का उल्लेख किया है उनमें से कुछ ही मिल सकी हैं और अनेकों अनुपलब्ध हैं । इसी तरह संघदासगणि का वसुदेवहिण्डी ग्रन्थ खण्डित मिला है । भद्रबाहुकृत वसुदेवचरित का उल्लेख भर मिलता है । कवि परमेष्ठिकृत 'वागर्थसंग्रह' तथा चतुर्मुख का 'पउमचरिउ' और हरिवंशपुराण आज तक अनुपलब्ध है । जो उपलब्ध हैं उन्हीं का परिचय प्रस्तुत किया जायगा ।
भारतीय साहित्य में कुछ ऐसे राष्ट्रीय चरित्र हैं जो सभी वर्गों को रुचिकर हैं । राम और कृष्ण तथा कौरव पाण्डवों के चरित्र इसी प्रकार के हैं। इनकी कथावस्तु को लेकर रामायण, महाभारत और हरिवंशपुराण की रचना हुई है । वाल्मीकि का रामायण आदिकाव्य माना जाता है। जैनों के पौराणिक महाकाव्य भी इन्हीं राष्ट्रीय चरित्रों को लेकर प्रारंभ होते हैं । इस क्रम में वि० सं० ५३० में रचित विमलसूरि का पउमचरियं प्राकृत का प्रथम जैन महाकाव्य है । उसके आधार पर कतिपय संस्कृत - प्राकृत रचनाएँ भी लिखी गई हैं । इसी तरह कौरव पाण्डवों के चरित को लेकर जिनसेन ने शक सं० ७०५ में हरिवंशपुराण की रचना की । उसके अनुकरण पर बाद की शताब्दियों में प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत में कई रचनाएँ बनी । रामायण और महाभारत विषयक रचनाओं के बाद काल की दृष्टि से महापुराणों का क्रम आता है जिनमें त्रिषष्टिशलाका' पुरुषों के चरित वर्णित हैं। इनका प्रारंभ जिनसेन - गुणभद्र के 'महापुराण- उत्तरपुराण ( ९वीं श० का उत्तरार्ध) से होता है । उनके आधार पर कई रचनाएँ उसी १. इनका उल्लेख जैनागमों में अर्थात् समवायांग, ज्ञाताधर्मकथा, कल्पसूत्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, त्रिलोकप्रज्ञप्ति, आवश्यकनिर्युक्ति- चूर्णि, विशेषावश्यकभाष्य और वसुदेवहिण्डी में मिलता है । वहाँ इन्हें 'उत्तम पुरुष' की संज्ञा दी है। किन्तु बाद में 'शलाका पुरुष' संज्ञा विशेष रूढ़ हुई । इन शलाका पुरुषों की संख्या जिनसेन और हेमचन्द्र ने ६३ दी है । समवायांग ( सू० १३२ ) में २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ बलदेव को ही 'उत्तम पुरुष' मान ५४ संख्या दी है पर उनमें ९ प्रतिनारायणों को जोड़ ६३ की संख्या बनती है । भद्रेश्वर ने अपनी कहावली में ९ नारदों की संख्या जोड़कर शलाका पुरुषों की संख्या ७२ दी है। हेमचन्द्र ने 'शलाकापुरुष' का er 'जातरेखाः' किया और भद्रेश्वरसूरि ने 'सम्यक्त्वरूप शलाका से युक्त' अर्थ किया है ।
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