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________________ पौराणिक महाकाव्य ३३ १५. शास्त्रीय नियमों के अनुसार 'सर्गबन्धो महाकाव्यम्' अर्थात् महाकाव्य को सर्गबद्ध होना आवश्यक है । अधिकांश पौराणिक महाकाव्य सर्गबद्ध हैं। किन्तु कुछ महाकाव्यों की कथा का विभाजन उत्साह, पर्व, लम्भक आदि नामों से हुआ है। १६. ये महाकाव्य शिक्षित और पण्डित वर्ग की अपेचा जनसाधारण को ध्यान में रखकर लिखे गये हैं । इसलिए इनकी भाषा सरल और स्वच्छन्द है। १३वीं-१४वीं शताब्दी तथा उसके आगे के काव्यों में मुहावरों, लोकोक्तियों तथा देशज शब्दों के प्रयोग से भाषा व्यावहारिक एवं बोल-चाल जैसी हो गई है। १७. इन महाकाव्यों में अनुष्टुप् छन्द का प्रयोग अधिक हुआ है। अन्य छन्दों में उपजाति, मालिनी, वसन्ततिलका आदि प्रमुख छन्दों का प्रयोग अधिकता से हुआ है। इनमें अनेक प्रकार के अर्धसम और विषम वर्णिक छन्दों तथा अप्रचलित छन्दों का प्रयोग भी हुआ है जिनमें षटपदी, कुण्डलिक, आख्यानकी, वैतालीय, वेगवती के नाम उल्लेखनीय हैं। वर्णिक छन्दों में छन्दशास्त्र के नियम के अनुसार जहाँ-जहाँ यति का विधान है वहाँ अन्त्यानुप्रास के प्रयोग द्वारा छन्द को नवरूपता प्रदान की गई है। कई महाकाव्यों में मात्रिक छन्दों का प्रयोग अधिकता से हुआ है। किन्तु कहीं-कहीं इन छन्दों में अन्त्यानुप्रास के प्रयोग से छन्दों में गेयता का गुण अधिक आ गया है और लय में गतिशीलता आ गई है। यह अन्त्यानुप्रास प्रत्येक चरण के अन्त में ही नहीं अपितु चरण के मध्य में भी पाया जाता है। प्रतिनिधि रचनाएँ और उनपर आधारित संक्षिप्त कृतियाँ : ___ जैन पौराणिक महाकाव्यों का परिचय देने के क्रम में हमारी पद्धति यह है कि सर्व प्रथम हम उन प्रतिनिधि रचनाओं का विवेचन करेंगे जो उत्तरवर्ती पौराणिक काव्यों के आधार हैं, स्रोत हैं, उपादान हैं। प्रत्येक प्रतिनिधि रचना के साथ उनके आधार पर रची संक्षिप्त कृतियों का भी विवरण दिया जायगा ताकि एक-एक का चित्र सामने आता जाय । इसके बाद अलग-अगल तीर्थकरों एवं अन्य शलाका पुरुषों के चरितों का विवरण दिया जायगा और इसी तरह अन्य प्रभावक आचार्यों और पुरुषों का भी। ___ जैन महाकाव्यों की अनेक प्रतिनिधि रचनाएँ आज तक अनुपलब्ध हैं। दाक्षिण्यांक आचार्य उद्योतन सूरि ने अपनी 'कुवलयमाला' कथा की प्रस्तावना में पादलिप्त की तरंगवती, षटपर्णक कवियों की रचना गाथाकोश, विमलांक के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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