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________________ __ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ८. अधिकांश काव्यों में मूल कथा के साथ अनेक अवान्तर कथाएँ दी गई हैं, जिनसे कथानक में शिथिलता दृष्टिगोचर होती है। फिर भी इन अवान्तर कथाओं में प्रचलित लोककथाओं के प्रचुरमात्रा में दर्शन होते हैं। ये अवान्तर कथाएँ कभी-कभी एक तृतीयांश तो कभी आधे से भी अधिक भाग को घेरे रहती हैं। ९. रचनाविन्यास में प्रारम्भ प्रायः एक-सा दिखायी पड़ता है-जैसे तीर्थंकरों की स्तुति, पूर्व कवियों और विद्वानों का स्मरण, सज्जन-दुर्जन चर्चा, देश, नगर, राजा, रानी का वर्णन, तीर्थकर या मुनि का नगर के बाहर उद्यान में आना, राजा यो नगरवासियों का वहाँ जाना, उपदेश सुनना और संवाद रूप में पूरी कथा का वर्णन । १०. शास्त्रीय महाकाव्योचित वर्ण विषयों में नदी, पर्वत, सागर, प्रातः, संध्या, रात्रि, चन्द्रोदय, सुरापान, सुरति, जलक्रीड़ा, उद्यानक्रीड़ा, वसन्तादि ऋतु, शारीरिक सौन्दर्य, जन्म, विवाह, युद्ध और दीक्षा आदि के वणन से समग्र जीवन का चित्र उपस्थित करना । ११. इन महाकाव्यों में अलौकिक एवं अप्राकृत तत्त्वों की प्रधानता दिखायी पड़ती है। ये दिव्यलोको, दिव्यपुरुषों और दिव्ययुगों की कल्पना से भरे हैं, साथ ही समय-समय पर विद्याधर, यक्ष, गन्धर्व, देव, राक्षस आदि की उपस्थिति से पात्रों की सहायता की गई है। उनकी उपस्थिति का सम्बन्ध पूर्व भवों के कर्मों से जोड़कर उस अस्वाभाविकता को दूर करने का प्रयत्न किया गया है। १२. इनमें अनेक प्रेमाख्यानक काव्य हैं जिनमें प्रेम, मिलन, दूतप्रेषण, सैनिक अभियान, नगरावरोध, युद्ध और विवाह को महत्त्व दिया गया है। १३. पौराणिक महाकाव्यों में महाकाव्य की परम्परा के विपरीत कहींकहीं क्षत्रियकुलोत्पन्न धीरोदात्त नृप को नायक न बनाकर मध्यम श्रेणी के वणिक आदि पुरुषों को और कहीं स्त्री को प्रमुख पात्र के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। १४. ये काव्य रस की दृष्टि से अधिकांश में शान्त रस पर्यवसायी हैं। यद्यपि इनमें आवश्यकतानुसार श्रृंगार, वीर, रौद्र, भयानक रसों का वर्णन है पर प्रधानता शान्त रस को दी गई है। जीवन की अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त करने के बाद भी अन्त में किसी मुनि के उपदेश-श्रवण द्वारा जीवन और संसार से विरक्ति दिखाना, संक्षेप में यही सभी पौराणिक महाकाव्यों का लक्ष्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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