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प्रकरण २
पौराणिक महाकाव्य जैन पौराणिक महाकाव्यों की प्रमुख विशेषताएँ और प्रवृत्तियाँ :
१. जैन पौराणिक महाकाव्यों की कथावस्तु जैनधर्म के शलाकापुरुषोंतीर्थकर, राम, कृष्ण आदि ६३ महापुरुषों के जीवनचरितों को लेकर निबद्ध की गई है। इनके अतिरिक्त अन्य धार्मिक पुरुषों के जीवनचरित भी वर्णित हुए हैं। कभी-कभी किसी व्रत. तीर्थ, पंच नमस्कार आदि के माहात्म्य को प्रदर्शित करने के लिए भी काव्य रचना की गई है। इन काव्यों को पुराण, चरित या माहात्म्य नाम से भी कहते हैं।
२. इन जीवनचरितों का उद्गम जैन आगमों और भाष्यों तथा प्राचीन पुराणों में है। कथानक में कल्पना द्वारा भी परिवर्तन करने की चेष्टा नहीं की गई है।
३. ये सभी धार्मिक काव्य हैं। कथा के माध्यम से धर्मोपदेश देना इनका उद्देश्य है। इसलिए इनमें काव्यरंस गौण और धर्मभाव प्रधान है। आत्मज्ञान, संसार की नश्वरता, विषय-त्याग, वैराग्यभावना, श्रावकों के आचार आदि का प्रतिपादन तथा नैतिक जीवन की उन्नति के लिए आदर्शों की योजना इन कृतियों के मुख्य विषय हैं।
४. कर्मफल की अनिवार्यता दिखाने के लिए चरितनायकों एवं अन्य पानों के पूर्वभवों की कथा मूल कथा के आवश्यक अंग के रूप में कही गई है।
५. अनेक काव्यों में स्तोत्रों की योजना की गई है जिनमें तीर्थंकरों या पौराणिक पुरुषों या मुनियों की स्तुति की गई है। किसी-किसी काव्य में तीर्थस्थानों और व्रतों का माहात्म्य भी वर्णित है।
६. कई काव्यों में ब्राह्मण, बौद्ध, चार्वाक आदि दर्शनों के सिद्धान्तों का खण्डन और जैन दर्शन का मण्डन है।
७. कुछ काव्य भावात्मक काम, मोह, अहंकार, अज्ञान, रागादि तत्त्वों को प्रतीक योजना द्वारा पात्र रूप से प्रस्तुत करते हैं।
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