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________________ ऐतिहासिक साहित्य ४५५ गुर्वावलि मुनिसुन्दरसूरि ने सं० १४६६ में एक विज्ञप्तिग्रन्थ अपने गुरु देवसुन्दरसूरि की सेवा में समर्पित किया था, उसका नाम त्रिदशतरंगिणी' था। इस विज्ञप्तिपत्र का संस्कृत साहित्य और इतिहास में सबसे अधिक महत्त्व है। इस जैसा विशाल और प्रौढ़ पत्र किसी ने नहीं लिखा। यह १०८ हाथ लम्बा था और इसमें एक से एक विचित्र और अनुपम सैकड़ों चित्र थे तथा हजारों काव्य (पद्य) दिखाई पड़ते थे। इसमें ३ स्तोत्र और ६१ तरंग थे। वर्तमान में यह समग्र नहीं मिलता। केवल तीसरे स्तोत्र का गुर्वावलि नाम का एक विभाग और प्रासादादि चित्रबंध अनेक स्तोत्र यहाँ-वहाँ फैले मिलते हैं। इस गुर्वावलि में ४९६ विविध छन्दों के पद्य हैं। इसमें श्रमण भग० महावीर से लेकर लेखक पर्यन्त तपागच्छ के आचार्यों का संक्षिप्त एवं विश्वस्त इतिहास दिया गया है। गुर्वावलि या तपागच्छ-पट्टावलीसूत्र : इसे उक्त दो नामों के अतिरिक्त केवल पट्टावली नाम से भी कहते हैं। यह २१ प्राकृत पद्यों की गुर्वावलि है जो प्राचीन पट्टावलियों के आधार पर बड़ी सावधानी से बनाई गई है। इसमें भग० महावीर से लेकर तपागच्छ के आचार्य हीरविजयजी और उनके शिष्य विजयसेनसूरि तक ५९ आचार्यों की पट्टधर परम्परा दी गई है। इसके रचयिता धर्मसोगरगणि है। इस पर एक स्वोपज्ञ वृत्ति भी है जिसके अन्त में लिखा है कि यह पट्टावली श्री विजयहीरसूरीश्वर के आदेश से उपाध्याय श्री विमलहषगणि, उपाध्याय कल्याणविजयगणि, सोमविजयगणि, पं० लब्धिसागरगणि प्रमुख गीतार्थों ने एकत्र होकर सं० १६४८ के चैत्र वदि ६ शुक्रवार को अहमदाबाद नगर में श्री मुनिसुन्दरकृत गुर्वावलि, जीर्ण पट्टावली, दुष्षमासंघ स्तोत्रयंत्रक आदि के आधार से संशोधित की है। १. जिनररनकोश, पृ० १०९; यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, सं० १९६१. २. श्रीमहापर्वाधिराजश्रीपर्युषणापर्वविज्ञप्तित्रिदशतरङ्गिण्यां तृतीये श्रीगुरुवर्णन स्रोतसि गुर्वावलिनाम्नि महाहृदेऽनभिव्यक्तगणना एकषष्टिस्तरंगाः । ३. जिनरस्नकोश, पृ० १०८ पट्टावलीसमुच्चय (धीरमगाम, १९९३), भा० १, पृ० ११-७७; पहावलीपरागसंग्रह (जालौर, १९६१), पृ० ११३-१५५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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