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ऐतिहासिक साहित्य
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है । वह सण्डेरकगच्छ के आचार्य शान्तिसूरि का अनुयायी था और जालोर का - रहनेवाला राज्यमान्य व्यक्ति था ।
४. वस्तुपालप्रशस्ति :
१२ पद्यों की यह प्रशस्ति' कुछ काल पूर्व प्रकाश में आई है । इसके रचयिता सुकृतसंकीर्तनकाव्यकर्ता अरिसिंह ठक्कुर हैं। इसमें वस्तुपाल का नाम वसन्तपाल वस्तुपाल दोनों दिया गया है और उदात्त काव्यात्मक शैली में यशोगाथा वर्णित है । इसमें किसी ऐतिहासिक घटना का उल्लेख नहीं है ।
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ग्रन्थ, दाता तथा लिपिकार - प्रशस्तियाँ :
ग्रन्थ से सम्बद्ध प्रशस्तियाँ दो प्रकार की हैं : प्रथम ग्रन्थकारप्रशस्ति, दूसरी पुस्तकप्रशस्ति । ग्रन्थकारप्रशस्ति में ग्रन्थरचयिता का अपना परिचय, उसकी - गुरुपरम्परा, रचनास्थान एवं समय आदि का उल्लेख होता है । पुस्तकप्रशस्ति -दो प्रकार की है : एक द्रव्यदान देकर लिखानेवालों की प्रशस्ति और दूसरी लेखन कार्य करनेवाले लिपिकार की प्रशस्ति । ऐसी प्रशस्तियाँ पिटरसन, भाण्डारकर आदि विद्वानों की रिपोर्टों में तथा पाटन, खंभात, जैसलमेर, बड़ौदा, अहमदाबाद, लिम्बड़ी, जैसलमेर, जयपुर, आमेर आदि जैनभण्डारों की विवरणात्मक सूचियों तथा जैन पुस्तक प्रशस्तिसंग्रह ' नामक ग्रन्थों में दी गई हैं। ऐसी प्रशस्तियाँ मध्ययुगीन भारत के सम्भ्रान्त जैन परिवारों के इतिहास की भी बहुत उपयोगी सूचनाएँ देती हैं । ये सूचनाएँ गुजरात और मध्य भारत से प्राप्त ग्रन्थों में कर्नाटक और तमिलदेश से प्राप्त ग्रन्थों की अपेक्षा अधिक हैं ।
१०वीं शताब्दी
१. यशोवीर के विशेष परिचय के लिए देखें : डा० भोगीलाल सांडेसराकृत महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मण्डल, पृ० ८१-८५.
महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ, पृ० ३०३-३३०, प्रशस्तिलेखाङ्क ६.
३. अब तक प्रकाशित इस प्रकार के ग्रन्थों में मुनि जिनविजयजी द्वारा सम्पादित जैनपुस्तकप्रशस्ति संग्रह, श्री अमृतलाल मगनलाल शाह द्वारा सम्पादित प्रशस्तिसंग्रह ( २ भाग ), पं० के० भुजबली शास्त्री द्वारा सम्पादित प्रशस्तिसंग्रह, पं० परमानन्द शास्त्रीकृत जैनप्रन्थप्रशस्तिसंग्रह, भाग १ ( संस्कृत - प्राकृत ) और भाग २ ( अपभ्रंश ) तथा डा० कस्तूरचन्द्र कासलीवाल द्वारा सम्पादित प्रशस्तिसंग्रह विशेष उल्लेखनीय हैं ।
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