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________________ . ४४० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नागेन्द्रगच्छ के आचार्यों का वर्णन तथा प्रशस्तिरचयिता और उसके गुरु का भी वर्णन है। ___नरेन्द्रप्रभसूरि की दूसरी वस्तुपालप्रशस्ति' ३७ पद्यों की मिलती है । इसमें राजा वीरधवल और दोनों भाइयों की कीर्ति वर्णित है। इसमें किसी भी ऐतिहासिक घटना का उल्लेख नहीं है। उक्त दोनों प्रशस्तियों के रचयिता नरेन्द्रप्रभसूरि वस्तुपाल के समय के विद्वान् मुनियों में एक थे। इन्होंने अपने गुरु नरचन्द्रसूरि की आज्ञा से वस्तुपाल के प्रीत्यर्थ अलंकारमहोदधिकारिका और वृत्ति की रचना सं० १२८२ में की थी। उनकी अन्य कृतियों में 'काकुत्स्थकेलिनाटक' १५०० श्लोक-प्रमाण का उल्लेख मिलता है। इनकी धार्मिक विषयों पर विवेकपादप और विवेककलिका नामक दो रचनाएँ और मिलती हैं। नरेन्द्रप्रभसूरि वस्तुपाल के साथ शत्रुजययात्रा में गये थे और उन्होंने ३७० पद्यों की प्रशस्ति यात्रा के प्रारम्भ होते ही और दूसरी यात्रा की समाप्ति होने पर शत्रुजय पर लिखी थी। ३. वस्तुपालप्रशस्ति : ४ पद्यों की एक प्रशस्ति वस्तुपाल के परम मित्र यशोवीर द्वारा रचित भी उपलब्ध हुई है। इसमें वस्तुपाल के गुणों का कीर्तन मात्र है, ऐतिहासिक बात कुछ भी नहीं। यशोवीर वस्तुपाल का अन्तरंग मित्र था।' समकालीन कवि सोमेश्वर ने दोनों मित्रों को सरस्वती के दो पुत्र कहकर प्रशंसा की है। जयसिंहसूरि के हम्मीरमदमर्दन नाटक ( अंक ५, श्लोक ४८ ) में वस्तुपाल द्वारा यशोवीर का अपने ज्येष्ठ भ्राता के समान आदर करना बताया गया है। प्रबन्धों में यशोवीरकृत कई पद्यों का उल्लेख मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि वह अच्छा संस्कृत कवि था, यद्यपि उसकी किसी रचना की उपलब्धि अब तक नहीं हुई १. महामात्य वस्तुपाल का साहित्य मण्डल, पृ० १८४. १. महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ में पृ० ३०३-३३० में प्रकाशित मुनि पुण्यविजयजी का लेख 'पुण्यश्लोक महामात्य वस्तुपालना अप्रसिद्ध शिलालेखो तथा प्रशस्तिलेखो' में प्रशस्तिलेखाङ्क ५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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