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ऐतिहासिक साहित्य जम्बूस्वामिचरित्र' में अकबर की प्रशंसा करते हुए कवि ने लिखा है कि सम्राट ने धर्म के प्रभाव से जजिया नामक कर बन्द करके यश का उपार्जन किया, उसके मुख से हिंसक वचन नहीं निकलते थे, हिंसा से वह सदा दूर रहता था और उसने जुआ और मद्य-पान का निषेध कर दिया था। सं० १६५० में रचे गये कर्मवंशोत्कीर्तनकाव्य' में बतलाया गया है कि बीकानेरनरेश का प्रधान कर्मचन्द्र बच्छावत राजा से अनबन होने के कारण अकबर बादशाह की शरण में आ गया था और उसने उसे अपना एक प्रतिष्ठित मन्त्री बना लिया। कर्मचन्द्र ने पूर्ववर्ती सुलतानों द्वारा अपहृत अनेक धातुमयी जिनमूर्तियाँ भी मुसलमानों से प्राप्त की और उन्हें बीकानेर के मन्दिरों में भिजवा दिया। सम्राट अकबर ने अपने शाहजादे सलीम पर आये अनिष्ट ग्रहों की शान्ति जैनधर्मानुसार करने के लिए अबुलफजल आदि विद्वान् मन्त्रियों की सलाह से कर्मचन्द्र बच्छावत को आदेश दिया था। उक्त मन्त्री के आग्रह पर बादशाह ने अहमदाबाद के सूबेदार आजम खाँ को फरमान भेजा कि मेरे राज्य में जैनतीर्थों, जैनमन्दिरों और मूर्तियों को कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार की क्षति न पहुँचा सके और इस आज्ञा का उल्लंघन करनेवाला भीषण दण्ड का भागी होगा।
उसी काल के मेड़ता दुर्ग से प्राप्त जैन शिलालेखों से ज्ञात होता है कि अकबर ने जैनमुनियों को युगप्रधान पद दिये थे, प्रति वर्ष आषाढ़ की अष्टाह्निका में अमारि (जीवहिंसा-निषेध) घोषणा की थी, प्रतिवर्ष सब मिलाकर ६ माह पर्यन्त समस्त राज्य में हिंसा बन्द कराई थी, खम्भात की खाड़ी में मछलियों का शिकार बन्द कराया था, शत्रुजय आदि तीर्थों का करमोचन किया था और सर्वत्र गोरक्षा का प्रचार किया था आदि । १५९५ ई० में पुर्तगाली पादरी पिन्हेरो ने भी इनमें से अनेक बातों का समर्थन किया है। आइनेअकबरी भी इन बातों की पुष्टि करती है। ___ तपागच्छीय आचार्य हीरविजय आदि के जीवनचरित्रों पर लिखे 'हीरसौभाग्यमहाकाव्य' आदि ग्रन्थों से भी मुगल बादशाहों की धार्मिक भावनाओं का पता चलता है। ___ सन् १५८२ के लगभग काबुल से लौटने के बाद अकबर ने गुजरात के शासक शिहाबुद्दीन अहमदखान के पास फरमान भेजकर आचार्य हीरविजय को
१.२. इन ग्रन्थों का संक्षित परिचय पहले दिया गया है। ३. भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृ० १८८.
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