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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
बतलाया गया है कि किस तरह उसके पूर्वज विभिन्न राजदरबारों में विशिष्ट पदों पर थे। मण्डन के पश्चात् भी उसके वंशधर मालवा के शासकों के अच्छे सहायक एवं पदाधिकारी बने रहे ।
सुमतिसम्भवकाव्य', जावडचरित्र और जावडप्रबन्ध से भी मालवा के सुलतान गयासुद्दीन खिलजी (१४८३-१५०१ ई.) के शासनकाल की अनेक सूचनाएँ मिलती हैं।
गुरुगुणरत्नाकर' (सं० १५४१) में अनेक प्रान्तीय शासकों के समय जैनधर्म और समाज की स्थिति का दिग्दर्शन कराया गया है। मालवा के प्रजाप्रिय, न्यायपालक सुलतान महमूद खिलजी (१४३६-१४८२ ई०) का मन्त्री मांडवगढ़वासी चन्द्रसाधु (चांदासाह) था। गयासुद्दीन खिलजी के राज्यकाल में पोरवाड़ जाति के प्रमुख व्यक्ति सूरा और वीरा नामक जैन थे। उक्त मण्डन कवि का वंशज मेघ नामक व्यक्ति इस सुलतान का मन्त्री था और उसे 'मफ्फरमलिक' उपाधि दी गई थी। इसी तरह और भी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक बातें दी गई है। मुगलकाल के जैन स्रोत :
मुगलवंश के मुस्लिम शासकों में से अकबर, जहांगीर और शाहजहां के विषय में कुछ जैन ऐतिहासिक काव्यों से अनेक बहुमूल्य सूचनाएँ मिलती हैं । तपागच्छीय उपाध्याय पद्मसुन्दरकृत पाश्वनाथकाव्य, रायमल्लाभ्युदय एवं अकबरशाहिशृंगारदर्पण की प्रशस्तियों से मालूम होता है कि पद्मसुन्दर अकबर द्वारा सम्मानित थे, उनके दादागुरु आनन्दमेरु अकबर के पिता हुमायूँ और पितामह बाबर द्वारा सत्कृत थे। वि० सं० १६३२ में पं० राजमल्ल विरचित
१. यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ में प्रकाशित दौलत सिंह लोढ़ा का लेख:
मंत्री मण्डन और उसका गौरवशाली वंश; जैन साहित्यनो संक्षित इतिहास,
पृ. ४७७-४८०. २. भारतीय इतिहास : एक दृष्टि, पृ० ४२०. ३. परिचय के लिए देखें पृ० २१६. ४.
, पृ० २२९. ५.
पृ० २१६. ६. इस ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय पहले दिया गया है ।
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