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________________ ऐतिहासिक साहित्य धर्म, जैनाचार्यों के क्रियाकलाप, जैन साहित्य, मन्दिर, तीर्थ आदि की स्थिति पर प्रकाश डालने के लिए कतिपय ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। ऐतिहासिक प्रसंग में यहाँ उनका दिग्दर्शन मात्र करा रहे हैं। नाभिनन्दनोद्धारप्रबन्ध अपरनाम शत्रुञ्जयतीर्थोद्धारप्रबन्ध : इसमें प्राचीन स्वतन्त्र गुजरात के अन्तिम महाजन समराशाह के महत्त्वपूर्ण कार्यों का विवरण देते हुए तुगलकवंश के सुलतानों और उनके प्रान्तीय शासकों की महत्त्वपूर्ण सुचनाएँ दी गई हैं जो तत्कालीन भारत के धार्मिक इतिहास के निर्माण में सहायक सिद्ध हुई हैं। समराशाह तीन भाई थे। बड़ा सहजपाल दक्षिण देश के देवगिरि ( दौलताबाद) में बस गया था। मझला साहण खंभात में बसकर अपने पूर्वजों की कीर्ति फैला रहा था और समराशाह पाटन रहकर प्रभावशाली बना था। तत्कालीन दिल्ली का सुलतान गयासुद्दीन तुगलक उस पर बड़ा स्नेह करता था और उसने उसे तैलंगाने का सूबेदार बनाया था। गयासुद्दीन के उत्तराधिकारी मुहम्मद तुगलक भी उसे भाई जैसा मानता था और अपने समय में भी उसने उसे उक्त पद पर रहने दिया। उसने अपने प्रभाव से पाण्डुदेश के स्वामी वीर वल्लाल सुलतान के चंगुल से छुड़ाया और मुसलमानों के अत्याचार से अनेक हिन्दुओं की रक्षा की। उसने उन मुसलमान शासकों के काल में जैनधर्म-प्रभावना के अनेक कार्य किये। जिनप्रभसूरिकृत विविधतीर्थकल्प से भी तुगलकवंश के राज्यकाल में जैनधर्म की स्थिति की अनेक सूचनाएँ मिलती हैं। मालवा के प्रान्तीय मुस्लिम शासक : इन शासकों के राज्यकाल में जैनों को अच्छा प्रश्रय मिलता रहा है। माण्डवगढ़ में अनेक धनाढ्य और प्रभावक जैन व्यापारी थे। उनमें से कुछ को समय-समय पर राजमन्त्री या प्रधानमन्त्री व अन्य अनेक विशिष्ट पदों को सम्हालने का अवसर मिला था। माण्डवगढ़ के सुलतान होशंगसाह गोरी (१४०५-१४३२ ई०) का महाप्रधान मण्डन नामक जैन था जो बड़ा शासनकुशल और मन साहित्यकार था। उसके द्वारा रचे ग्रन्थों की प्रशस्तियों में १. ग्रन्थ का लघु परिचय पृ० २२९ में दिया गया है। २. विशेष के लिए देखें : डा. ज्योतिप्रसाद जैन, भारतीय इतिहास : एक __ दृष्टि, पृ० १११-४१६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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