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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
करते थे। अनेक बार ग्रन्थों और ग्रन्थकारों के नाम का भी उल्लेख करते थे। ये उद्धरण बहुधा हमें विभिन्न आचार्यों के सापेक्षिक युग का निश्चय करने में या विस्तृत पर निश्चित समयावधियों तक पहुँचने में समर्थ बनाते हैं। . इसके अतिरिक्त जैन विद्वानों ने लाक्षणिक साहित्य की विविध शाखाओं में कई ग्रन्थ लिखे हैं जो हमें भारतीय राजनीतिक इतिहास की कई महत्त्वपूर्ण सूचनाएं देते हैं। उदाहरण के लिए चौलुक्य सिद्धराम जयसिंह के समय में वर्धमानसूरिकृत 'गणरत्नमहोदधि' नामक व्याकरण ग्रन्थ में धारानरेश भोज की उपाधि और धर्म का उल्लेख है तथा सिद्धरान विषयक कई उल्लेख हैं । हेमचन्द्रकृत शब्दानुशासन में सिद्धरान की मालवा के ऊपर वर्षों तक लड़ाई का उल्लेख है।
मलयसूरिकृत अन्य संस्कृत व्याकरण ग्रन्थ में अर्णोराज के ऊपर कुमारपाल की विजय का उल्लेख है। _इसी तरह नेमिकुमार के पुत्र वाग्भटकवि द्वारा रचित काव्यानुशासन में और सोम के पुत्र कवि बाहड ( वाग्भट ) के वाग्भटालं.--- में और हेमचन्द्राचार्य के छन्दोनुशासन में सिद्धराज की प्रशंसा में कई पद्य आये हैं।
१६वीं शती के प्रारम्भ में रत्नमन्दिरगणिकृत उपदेशतरंगिणी में गुजरात के इतिहास से सम्बन्धित अनेक बातें आई हैं। इसी काल के उपदेशसप्तति ग्रन्थ में भीमदेव प्रथम के सांधिविग्रहिक डामरनागर की कथा तथा दूसरी ऐतिहासिक बातें दी गई हैं । आचारोपदेश और श्राद्धविधि में कुमारपाल, वस्तुपाल, तेजपाल आदि के सम्बन्ध की कई बातों का उल्लेख है। सत्तरहवीं शती के धर्मसागर उपाध्यायकृत 'प्रवचनपरीक्षा' में चावड़ा, चौलुक्य और बघेलों की वंशावलियाँ दी गई हैं।
पुराण-कथा-साहित्य के ग्रन्थों में बिखरी सामग्री की ओर हमने उन ग्रन्थों के परिचय में ही ध्यान आकर्षित किया है । तुगलक वंश के जैन स्रोत:
इस वंश का राज्य सन् १३२१ से १४१४ ई. तक रहा। इस वंश में प्रसिद्ध तीन.सुलतान हुए : १. गयासुद्दीन तुगलक (१३२१-१३२५ ई०), २. मुहम्मद बिन तुगलक ( १३२५-५१ ई०), ३. फिरोजशाह तुगलक (१३५१. २३८८ ई०)। इन सुलतानों के राज्य और प्रान्तीय शासकों के राज्य में जैन
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