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________________ ऐतिहासिक साहित्य ४२५ पाल की मृत्यु वि० सं० १२२९ के साथ बन्द हो जाता है। बघेलों के विषय में वह कुछ नहीं लिखता सिवाय इसके कि भीम द्वितीय के बाद वह आया । यही इसका दोष है। यदि उसने अपने समय का इतिहास लिखा होता तो उसका यह ग्रन्थ कल्हण के ग्रन्थ' की कोटि का माना जाता । इस प्रबन्ध के लेखक ने इतिहास लिखने में यह अनुभव अवश्य किया कि राजाओं के वंश और उनकी तिथियाँ बड़े महत्व की हैं। यद्यपि प्रबन्धचिन्तामणि में दी गई अधिकांश तिथियाँ ठीक नहीं हैं फिर भी वे कुछ महीनों या वर्ष से अशुद्ध हैं, विशेष नहीं । सम्भवतः प्राचीन दस्तावेजों को देखकर उसने राजा के राजपद पाने का वर्ष तो माना परन्तु ठीक तिथि नहीं। यदि उसे इस सूचना के कैसे भी लात नहीं मिल सके तो तिथि के सम्बन्ध में अनुमान करता हुआ सा मालूम होता है और विश्वास करने लायक एक कथा रच देता है। फिर भी इतना तो मालूम होता है कि वह तिथियों के महत्व को समझता था। जबकि दूसरी ओर हम देखते हैं कि द्वयाश्रयकाव्य, कीर्तिकौमुदी (सोमेश्वरकृत ) व अन्य कृतियों में तिथिसम्बन्धी एक भी निर्देश महीं दिया गया। इस प्रबन्ध के रचयिता ने एक प्रकार से इतिहास लिखने की आवश्यकता समझी थी। उसकी सभी प्रसंगक्याओं का ताना-बाना इतिहास को अन्तर्भाग बनाकर हुआ, उनके क्रम में कोई रुकावट नहीं और सभी तथ्य साधारणतः निश्चित कालक्रमरूप में रखे गये हैं। ग्रन्थकार की प्रस्तुत करने की पद्धति भी ठीक है और उसने चौलुक्यों के इतिहास के इस महत्त्वपूर्ण भाव को भी समझ लिया था कि उनके इतिहास का लेखन मालवा के परमारों के इतिहास को 'बिना बतलाये असम्भव है। रचयिता-संस्कृत साहित्य में इस अपूर्व कृति के रचयिता मेरुतुंगसूरि हैं जो नागेन्द्रगच्छ के चन्द्रप्रभ के शिष्य थे। इस ग्रन्थ की रचना वढमाण (वर्धमान १. यह दूसरे रूप में बतलाता है कि बघेलवंश जैनधर्म का दृढ़ समर्थक नहीं ___ था, जैसा कि कुछ काल के लिए वह माना जाता है। २. यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि कल्हण को राजतरंगिणी के प्रारम्भिक सर्ग सदोष हैं जब कि पिछले सर्ग जिनमें कल्हण उन घटनामों का वर्णन करता है जिनका उसे या उसके पिता को प्रत्यक्ष ज्ञान था, ठीक इतिहास बतलाते हैं। यह हमें प्रबन्धचिन्तामणि में नहीं मिलता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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