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________________ ४२४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस कृति के निर्माण में ग्रन्थकार का स्पष्ट उद्देश्य उन बहुधा श्रुत पुरानी कथाओं को, जो कि बुधजनों के चित्त को तब प्रसन्न न कर रही थीं, पुनः स्थापित करना है : भृशं श्रुतत्वान्न कथाः पुराणाः प्रीणन्ति चेतांसि तथा बुधानाम् । वृत्तस्तदासन्नसतां प्रबन्धचिन्तामणिग्रन्थमहं तनोमि ।। इस ग्रन्थ में अधिकांश रोचक प्रसंग-कथाएँ हैं। इन प्रसंग-कथाओं का मूल संदिग्ध है और अनेक तो काल्पनिक हैं। इस ग्रन्थ में कुछ बड़े महत्त्व के ऐतिहासिक उपाख्यान भी हैं जिन्हें हम विक्रम सं० ९४०-१२५० तक का गुजरात का सामान्य इतिहास मान सकते हैं । कर्नल किन्लाक फार्वस ने अपने 'रासमाला' नामक गुजरात के इतिहास के प्रथम बड़े भाग का मुख्य आधार इसी ग्रन्थ को बनाया था। बाम्बे गजेटियर के प्रथम भाग में जो अणहिलपुर का इतिहास दिया गया है उसका मुख्य आधार यही प्रबन्धचिन्तामणि है। गुजरात के इतिहास के लिए प्रबन्धचिन्तामणि जिस सामग्री की पूर्ति करता है वैसी सामग्री दूसरे ग्रन्थ से नहीं मिलती। इस ग्रन्थ को और कश्मीर के इतिहास के लिए राजतरंगिणी को छोड़ भारतवर्ष के अन्य किसी प्रान्त के लिए इतिहास ग्रन्थ नहीं मिलते। अणहिलपुर के सम्बन्ध में जो बातें इसमें दी गई हैं प्रायः वे सभी विश्वसनीय है। इसमें अणहिलपुर के राजाओं का जो राज्यकाल बताया गया है वह अन्य ऐतिहासिक एवं पुरातत्वीय सामग्री से समर्थित होता है। ग्रन्थकार ने गुजरात को इस काल में विशेष प्रसिद्धि करानेवाले और गुजरात के गौरव की वृद्धि में भाग लेनेवाले पुरुषों के प्रबन्धों को एकत्र करने का प्रयत्न किया है। ग्रन्यकर्ता स्वयं एक जैन आचार्य थे और जैन श्रोताओं का मनोरंजन करने के लिए ग्रन्थ-रचना करना उनका मुख्य उद्देश्य था। इसलिए यह स्वाभाविक है कि जैन तथ्यों की ओर उनका पक्षपात हो। फिर भी गुजरात के समुचित प्रभाव पर उनका अनुराग था। इससे जैनों से थोड़ा भी सम्बन्ध न रखनेवाली अनेकों बातें इसमें संगृहीत हैं। वे केवल इतिहाससंग्रह की दृष्टि से अपने संग्रह में रखी गई हैं। इस ग्रन्थ का सबसे बड़ा दोष यह है कि इसमें अपने युग (१३०४ ई०) की, जिसका कि लेखक को प्रत्यक्ष शान था, उपेक्षा की गई है और इसके बदले उस काल पर लिखा गया है जिसके लिए वह मौखिक परम्परा और पूर्ववर्ती रचनाओं पर निर्भर रहा है। प्रबन्धचिन्तामणि में गुजरात का इतिहास वास्तव में कुमार For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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