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ऐतिहासिक साहित्य
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एकत्र हुए समाज को धर्मोपदेश देना और जैनधर्म के सामर्थ्य और महत्त्व को प्रकट करने के लिए साधुओं द्वारा दृष्टान्तरूप उचित सामग्री प्रस्तुत करना और लौकिक विषय को लेकर श्रोताओं का रुचिर चित्तविनोद कराना। फिर भी कुछ प्रबन्ध बड़ी विचित्र कल्पनाओं, भद्दी बातों, तिथिविपर्यास और अनेक भूलों
और त्रुटियों से भरे हैं। इसलिए प्रबन्धों को वास्तविक इतिहास या जीवनचरित नहीं समझना चाहिए अपितु ऐसी सामग्री का इतिहास-रचना में विचारपूर्वक उपयोग करना चाहिए। उनकी एकदम अवहेलना भी ठीक नहीं क्योंकि प्रबन्धों का अधिकांश भाग अभिलेखों एवं विश्वसनीय स्रोतों से समर्थित है। भारत का मध्यकालीन इतिहास इनमें निहित सामग्री का उपयोग किये बिना पूर्ण भी नहीं समझा जा सकता।
इस प्रकार के साहित्य का सूत्रपात तो हेमचन्द्राचार्य ने कर दिया था और उनके अनुसरण पर प्रभाचन्द्र ने प्रभावकचरित लिखा और पीछे अनेक ग्रन्थ लिखे गये। इन प्रबन्धों में हमें ऐतिहासिक महत्त्व के राजा, महाराजा, सेठ और मुनियों के सम्बन्ध में प्रचलित कथा-कहानियों का संग्रह मिलता है। इनके वर्णनों की अभिलेखों और अन्य साहित्यिक आधारों से जाँच-पड़ताल करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि ये बहुधा ऐतिहासिक तथ्य के समीप हैं। इस विषयक कुछ कृतियों का परिचय यहाँ प्रस्तुत करते हैं। प्रबंधावलि __उपलब्ध प्रबन्धों में सर्वप्रथम हमें जिनभद्रकृत प्रबन्धावलि मिलती है जिसमें ४० गद्य प्रबन्ध हैं जो अधिकांशतः गुजरात, राजस्थान, मालवा और वाराणसी से सम्बन्धित ऐतिहासिक व्यक्तियों और घटनाओं पर हैं और कुछ तो लोककथाओं को लेकर लिखे गये हैं। जिस रूप में यह प्राप्त हुई है वह पूर्ण नहीं कहा जा सकता। यह वस्तुपाल महामात्य के जीवनकाल में उसके पुत्र जैत्रसिंह के अनरोध पर सं० १२९० में रची गई थी परन्तु इसमें कुछ प्रबन्ध ऐसी घटनाओं पर भी हैं जो वस्तुपाल की मृत्यूपरान्त घटी थीं। इसमें एक प्रबन्ध अर्थात् 'वलभीभंगप्रबन्ध' प्रबन्धचिन्तामणि से अक्षरशः नकल उतार लिया गया है। इसके दो प्रबन्धों पादलिसाचार्यप्रबन्ध एवं रत्नश्रावकप्रबन्ध को प्रबन्धकोश से लिया गया है। प्रबन्धावलि की रचना-शैली बड़ी सरल और सीधी है जब कि प्रबन्धकोश की शैली अलंकारिक और उन्नत है। इससे यह बात सिद्ध होती
1. Life of Hemachandra ( Buhler ), pp. 3-4.
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