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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ५. वीसलदेव के दरबार में सोमेश्वर आदि कवि थे। सुकृतसागर या पेथडचरित: इसका परिचय पहले दिया गया है। पेथड सेठ मालवा के परमारनरेश जयसिंह द्वितीय द्वारा राजचिह्न से सम्मानित हुआ था। इसका सम्मान देवगिरि और गुजरात के तत्कालीन दरबारों में भी था। देवगिरि के राजा ने उसे मन्दिर. निर्माण के लिए बहुत भूमि दान में दी थी। उसके पुत्र झाझण ने गुजरातनरेश सारंगदेव ( १२७४-९६ ई० ) के साथ भोजन किया था। पेथड के पिता ने ४५ जैनागमों की अनेक हस्तप्रतियाँ भड़ौच, देवगिरि आदि के सरस्वती भण्डारों में भेंट की थीं। प्रबन्ध-साहित्य : चरित और कथा-साहित्य से सम्बद्ध गुजरात और मालवा के क्षेत्र में जैन प्रतिभा ने एक विशिष्ट प्रकार के साहित्य का निर्माण किया जो 'प्रबंध' साहित्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह प्रबंध-काव्यों से भिन्न है। प्रबंध एक प्रकार का ऐतिहासिक या अर्धऐतिहासिक कथानक है जो सरल संस्कृत गद्य और कभीकभी पद्य में भी लिखा गया है। प्रबन्धचिन्तामणि, प्रबन्धकोष, भोजप्रबन्ध, विविधतीर्थकल्प, प्रभावकचरित, पुरातनप्रबन्धसंग्रह आदि ग्रन्थ इस साहित्य के उदाहरण हैं। प्रबन्धकोश के रचयिता राजशेखरसूरि ने चरित और प्रबन्ध का अन्तर बतलाते हुए लिखा है कि 'श्रीवृषभवर्धमानपर्यन्तजिनानां चक्रयादीनां राज्ञां ऋषीणां चार्यरक्षितान्तानां वृत्तानि चरितानि उच्यन्ते । तत्पश्चात्कालभाविनां तु नराणां वृत्तानि प्रबंधा इति' पर उनके इस कथन का कोई प्राचीन आधार नहीं और यह विभेद साहित्यकारों ने पालन भी नहीं किया । उदाहरण के लिए कुमारपाल, वस्तुपाल, जगडू आदि के चरितों को चरित कहा गया है और प्रबन्ध भी, यथा जिनमण्डनगणि की रचना कुमारपालप्रबन्ध और जयसिंहसूरि की रचना कुमारपालभूपालचरित या अन्य ग्रन्थ जावडचरित्र और जावडप्रबन्ध आदि। प्रबन्धों के विषय को देखते हुए हम कह सकते हैं कि वे इस प्रकार के निबन्ध हैं जो शासक, विद्वान् , साधु, गृहस्थ एवं तीर्थं तथा किसी घटना सम्बन्धी ऐतिहासिक जानकारी को लेकर लिखे गये हैं। जर्मन विद्वान् बुहलर के शब्दों में प्रबन्ध लिखे जाने का उद्देश था धर्मश्रवण के लिए . .. परिचय के लिए देखें पृ. २२८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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