________________
४१७
ऐतिहासिक साहित्य सम्बन्ध रखनेवाली अपने समय में उपलब्ध पूर्ववर्ती सभी ऐतिहासिक सामग्री का उपयोग किया है। मुनि जिनविजय के कथनानुसार कल्हण की राजतरंगिणी का जैसा ऐतिहासिक मूल्य है उसी प्रकार इस काव्य का भी है। इस प्रकार के दूसरे ग्रन्थों में जैसी अतिशयोक्तियाँ मिलती हैं उनसे अपेक्षाकृत यह मुक्त है। परन्तु ग्रन्थकार ने एक महत्वपूर्ण बात का जैसा उल्लेख होना चाहिए, नहीं किया। मेरुतुंगाचार्य ने प्रबन्धचिन्तामणि में तथा अन्य पुरातन प्रबन्धों में एवं गुजराती रासों में स्पष्ट लिखा है कि वस्तुपाल-तेजपाल की माता कुमारदेवी का आशराज के साथ पुनर्विवाह हुआ था परन्तु जिनहर्ष ने अपने ग्रन्थ में इसका आभास भी नहीं दिया । लगता है कवि के समय में पुनर्विवाह सामाजिक दृष्टि से हेय समझा जाने लगा था।
कविपरिचय एवं रचनाकाल-इसके रचयिता जिनहर्षगणि हैं। इनके गुरु जयचन्द्रसूरि थे । इस ग्रन्थ की रचना चित्तौड़ में सं० १४९७ में हुई थी । इनकी अन्य रचनाओं में रत्नशेखरकथा, आरामशोभाचरित्र, विंशतिस्थानकविचारामृतसंग्रह और प्रतिक्रमणविधि आदि मिलती हैं। इनके ग्रन्थ 'हर्षाक' से अंकित हैं।
राजाओं और मन्त्रियों के अतिरिक्त दानी सेठों, महाजनों के चरित पर लिखे गये जैन काव्यों से भी ऐतिहासिक महत्त्व की सूचनाएं मिलती हैं। जगडूचरित:
इसका परिचय पहले दे चुके हैं । इससे निम्नलिखित जानकारी मिलती है :
१. सं० १३१२ से १३१५ तक गुजरात में भयंकर दुर्भिश्च पड़ा था जिसमें वीसलदेव जैसे समृद्ध राजाओं के पास भी अन्न नहीं रहा था।
२. सं० १३१२ से १३१५ में गुजरात में वीसलदेव. का, मालवा में मदनवर्मा का, दिल्ली में मोजदीन (नसीरुद्दीन) का तथा काशी में प्रतापसिंह का शासन था।
३. पार प्रदेश का शासक पीठदेव अणहिल्लपुर के शासक लवणप्रसाद का समकालीन था।
४. उस समय गुजरात का समुद्री व्यापार उन्नति पर था। भारतीय जहाज समुद्र पार के देशों में आते-जाते थे। १. परिचय के लिए देखें पृ० २२०.
२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org