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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ७. हेमचन्द्र एवं कुमारपाल तथा जैन मन्त्री वाग्भट, आम्रभट आदि द्वारा जैनधर्म की प्रभावनाविषयक चर्चाएँ जयसिंहसूरि के कुमारपाल भूपालचरित के समान ही हैं। ४१६ इस काव्य को अन्य महाकाव्योचित लक्षणों द्वारा भी कवि ने सजाया है । इस काव्य में वीररस की प्रधानता है फिर करुण, रौद्र, वीभत्स तथा अद्भुत रसों को भी यथोचित स्थान मिला है । अलंकारों में शब्दालंकार को अधिक अपनाया गया है । अर्थालंकारों का भी प्रयोग भावाभिव्यक्ति में सहायक के रूप में किया गया है, बलात् नहीं । काव्य के अधिकांश सर्गों और वर्गों में कवि ने नाना वृत्तों का प्रयोग किया है । यत्र-तत्र छन्दपरिवर्तन द्रुतगति से हुआ है पर ऐतिहासिक काव्य में यह कविकौशल का अपव्यय है । कुल मिलाकर २४ छन्दों का प्रयोग हुआ है । कविपरिचय और रचनाकाल - इस काव्य के रचयिता चारित्रसुन्दरगणि हैं । इनका अपरनाम चारित्रभूषण भी है । इनके गुरु का नाम भट्टारक रत्नसिंहसूरि है जो सत्तपोगच्छ के आचार्य थे। इनकी गुरुपरम्परा इस प्रकार है : विजयेन्दुसूरि, क्षेमकीर्ति, रत्नाकरसूरि, अभयनन्दि, जयकीर्ति, रत्ननन्दि या रत्नसिंह | प्रस्तुत काव्य की रचना सं० १४८७ में की गई है। इसकी रचना में प्रेरक शुभचन्द्रगणि थे । चारित्रसुन्दरमणि की अन्य रचनाओं में शीलदूत ( वि० सं० १४८७ ), महीपालचरित तथा आचारोपदेश उपलब्ध हैं । वस्तुपालचरित : १५वीं शती में कुमारपालचरित्र की भांति वस्तुपाल के चरित्र पर प्रस्तुत काव्य एक बड़ी रचना है । इसमें आठ प्रस्ताव हैं और ग्रन्थाग्र ४८३९ श्लोकप्रमाण है । ' इस ग्रन्थ में वस्तुपाल का विस्तारपूर्वक जीवन दिया गया है । यह इसलिए सूक्ष्म अध्ययन योग्य है क्योंकि चरित्रनायक की मृत्यु के दो सौ वर्ष बाद रचित होने पर भी उसके जीवन के कितने ही तथ्य प्राप्त होते हैं जो किसी भी समकालिक लेखक ने नहीं दिये हैं । चरित्रकार ने वस्तुपाल के जीवन और कार्यों से १. जिनरत्नकोश, पृ० ३४५; हीरालाल हंसराज, जामनगर; इसका गुजराती अनुवाद जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर से सं० १९७४ में प्रकाशित हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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