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ऐतिहासिक साहित्य काव्य का शौक था। नयचन्द्र तब ५० वर्ष के रहे होंगे। इस सबसे अनुमान होता है कि उक्त काव्य की रचना सं० के १४४० आस-पास, संभवतः सं० १४५० के पूर्व हुई है। कुमारपालचरित:
यह १५वीं शती का कुमारपाल पर दूसरा काव्य है।'
इसमें १० सर्ग हैं जिनमें कुल मिलाकर २०३२ श्लोक हैं। इसका ऐतिहासिक अंश अत्यल्प है फिर भी इससे कुमारपाल तथा उसके पूर्वजों के विषय में कुछ जानकारी अवश्य प्राप्त हो जाती है इसलिए इसे ऐतिहासिक काव्य कहते हैं । इस काव्य से निम्नलिखित ऐतिहासिक बातें ज्ञात होती हैं :
१. भीमदेव मूलराज का प्रतापी वंशज था। उसकी दो पत्नियों से दो पुत्र कर्णराज और क्षेमराज हुए थे। (प्रथम सर्ग)
२. कर्णराज अपने पुत्र जयसिंहदेव को राज्य देकर आशापल्ली चला गया। वह तत्कालीन मालवनरेश को दण्डित करना चाहता था किन्तु उसका शीघ्र देहान्त हो गया। जयसिंह ने अपने पिता की प्रतिज्ञा पूरी की पर उसने मालवराज को पुनः प्रतिष्ठित कर दिया। उसने कर्णाट, लाट, मगध, कलिंग, वंग, कश्मीर, कीर, मरु, सिन्धु आदि देशों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया । (द्वितीय सर्ग)
३. क्षेमराज के पुत्र त्रिभुवनपाल के तीन पुत्र थे-कुमारपाल, महीपाल, कीर्तिपाल । जयसिंह ने कुमारपाल के पिता का वध करा दिया जिससे उसे भी जन्मभूमि छोड़कर देशान्तरों में भटकना पड़ा। (द्वितीय सर्ग) ___४. जयसिंह के पश्चात् कुमारपाल सिंहासन पर आसीन हुआ। उसने शाकंभरीनरेश अर्णोराज को परास्त किया था। उसके मन्त्रीपुत्र अम्बड ने कोंकणराज मल्लिकार्जुन का प्राणान्त कर बहुत-सा धन प्राप्त किया। गजनी के बादशाह ने कुमारपाल पर आक्रमण किया किन्तु हेमचन्द्र ने मंत्रबल से उसे बाँध दिया । डाहलनरेश कर्ण ने मी उस पर चढ़ाई करने की योजना बनाई थी किन्तु ऐसा करने के पूर्व ही वह मर गया। ( ३, ६, १० सर्ग)
५. चालुक्यों की कुलदेवी कण्टेश्वरी थी। ६. कुमारपाल को हेमचन्द्र ने जैनधर्म में दीक्षित किया था। (पञ्चम सर्ग)
१. जैन भात्मानन्द सभा, भावनगर, सं० १९७३; जिनरत्नकोश, पृ० ९२.
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