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________________ ४१४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कविपरिचय और रचनाकाल-इस काव्य के अन्त में प्रशस्ति द्वारा कवि ने अपना जो परिचय दिया है उसके अनुसार इसके रचयिता महाकवि नयचन्द्रसूरि हैं जो कुमारपालभूपालचरित्र के रचयिता कृष्णगच्छीय जयसिंहसूरि के शिष्य प्रसन्नचन्द्रसूरि के शिष्य थे। प्रशस्ति में कवि ने इस काव्य के रचने के दो प्रेरणा-सूत्रों का उल्लेख किया है। पहला यह कि हम्मीर की दिवंगत आत्मा ने उन्हें स्वप्न में हम्मीरचरित ग्रथित करने का आदेश दिया। दूसरा यह कि ग्वालियर के तत्कालीन शासक वीरमदेव तोमर (१४४०-१४७४ ई.) की यह उक्ति कि प्राचीन कवियों के सदृश मनोहर काव्य की रचना अब कौन कर सकता है ? इस चुनौती के फलस्वरूप उसे सरस काव्य रचने की प्रेरणा मिली। - इस महाकाव्य की रचना कब हुई इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता। श्री अगरचन्द नोहटा को कोटा के जैन भण्डार से इस काव्य की प्राचीनतम हस्तलिखित प्रति वि० सं० १४८६ की मिली है अतः इसकी रचना इसके पूर्व तो अवश्य हो चुकी थी। जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास के लेखक श्री मो० द० देसाई ने इस काव्य का रचनाकाल सं० १४४० के लगभग माना है। इसकी पुष्टि इतिहासज्ञ विद्वान् डा० दशरथ शर्मा ने भी की है। उनका कहना है"हम्मीरमहाकाव्य' में समय नहीं दिया गया किन्तु अनुमान से कुछ ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। नयचन्द्रसूरि ने अपने दादागुरु जयसिंहसूरि के 'कुमारपालभूपालचरित' की टीका सं० १४२२ में लिखी थी। जयसिंहसूरि ने प्रसन्न होकर नयचन्द्रसूरि को 'अवधानसावधानः प्रमाणनिष्ठः कवित्वनिष्णातः' के विशेषणों से अभिहित किया है। इन विशेषणों को ध्यान में रखते हुए उनकी आयु सम्भवतः ३० वर्ष की रही होगी। 'हम्मीरमहाकाव्य' को रचना के समय कवि लब्धप्रतिष्ठ हो चुके थे। इसलिए सं० १४२२ के कुछ समय बाद अर्थात् सं० १४४० के लगभग इस काव्य का रचनाकाल मानना उचित प्रतीत होता है । तोमरनरेश वीरमदेव, जिसके राज्यकाल में यह काव्य लिखा गया था, का समय जयपुर भण्डार के एक ग्रन्थ से ज्ञात होता है कि उसने सं० १४७९ तक राज्य किया था। यदि सं० १४४० को, जिस समय के लगभग उक्त काव्य की रचना की गई थी, उक्त नरेश का प्रथम राज्यवर्ष माने तो उक्त नरेश का राज्यकाल ४० वर्ष के लगभग बैठता है जो कि सम्भव है। सम्भवतः नयचन्द्रसूरि वीरम के दरबार में उसके राज्य के प्रारम्भ में ही पहुंचे थे। नये राजा को उस समय १. सर्ग ११, श्लो० २६ और ४३. २. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ६४, सं० २०१६, पृ० ६७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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