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ऐतिहासिक साहित्य
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के वर्णन के साथ-साथ घटनाओं के कार्य-कारण सम्बन्ध को प्रदर्शित कर कवि ने ऐतिहासिकों के हृदय में बड़ा ही सम्मान का स्थान पा लिया है ।
महाकाव्यीय तत्त्वों की दृष्टि से देखा जाय तो यह एक उदात्त काव्य है । इसमें नायक और प्रतिनायक अर्थात् हम्मीर और अलाउद्दीन तथा अन्य सहायक और प्रतिपक्षी पात्रों का अच्छा चरित्र-चित्रण किया गया है । इसी तरह प्रकृति का व्यापक चित्रण भी हुआ है। पंचम से लेकर नवम सर्ग तक तथा त्रयोदश सर्ग में प्रकृति का चित्रण ही कवि का लक्ष्य रहा है । सौन्दर्य-चित्रण में कवि ने पुरुषपात्रों में हम्मीर तथा त्रोपात्रों में हम्मीर की माता हीरादेवी तथा नर्तकी धारादेवी का सौन्दर्य - वर्णन किया है । समाज -चित्रण की भी यत्र-तत्र झलक दी गई है, जैसे सामान्य जनता तथा राजा-महाराजाओं में मुहूर्त और शुभलग्नों के प्रति अपूर्व विश्वास, हिन्दू राजाओं में यज्ञ की परम्परा, राजनीति में छलकपट आदि ।
कवि ने इस काव्य में धार्मिक भावना न के बराबर व्यक्त की है । केवल मंगलाचरण में जिनदेवता और ब्राह्मणदेवता दोनों को नमस्कार किया है तथा दूसरी जगह हम्मीर द्वारा मारिनिवारण और सतव्यसन- वर्जन की घोषणा |
यथास्थान दिखलाया
रयोजना की दृष्टि से यह अपने युग का श्रेष्ठ काव्य है । इसमें शृंगार और वोर-रस को प्रमुख स्थान मिला है । कवि ने स्वयं इसे शृंगारवीराद्भुत काव्य कहा है । इसी तरह रौद्र, करुण और वात्सल्य रसों की अभिव्यक्ति भी यथास्थान हुई है । इस काव्य की भाषा में गरिमा और प्रौढ़ता है । काव्यलेखक नयचन्द्रसूरि की भाषा अपने पदलालित्य के लिए पण्डितों में प्रसिद्ध रही है । उसकी भाषा में माधुर्य, ओज और प्रसाद तीनों गुगों को गया है । कवि ने भाषा में सूक्तियों और सुभाषितों का यथास्थान प्रयोग कर मोहकता भी ला दी है । विविद्यालंकारों की योजना कर कवि ने काव्य सौन्दर्य की बृद्धि की है । शब्दालंकारों में यमक और अनुप्रास का प्रयोग नहाँ-तहाँ किया गया है, वे स्वाभाविकता लिए हुए भी हैं । अर्थालंकारों में उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक अलंकारों की योजना अधिक हुई है । नयचन्द्रसूरि की उपमाएँ तो अनूठी हैं । अन्य अलंकारों का भी उपयोग यथास्थान हुआ है । छन्दों के प्रयोग में कवि ने महाकाव्य के छन्दोविधान सम्बन्धी नियमों का प्रायः पालन किया है । काव्य के सर्गान्त में नाना छन्दों का प्रयोग हुआ है । दसवें सर्ग में विविध छन्दों की योजना की गई है। इस काव्य में कुल मिलाकर २६ छन्दों का प्रयोग हुआ है ।
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