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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कविपरिचय एवं रचनाकाल-इस काव्य के रचयिता बालचन्द्रसूरि हैं। इस काव्य के प्रथम सर्ग में कवि ने अपना जैन मुनि होने से पहले के जीवन का परिचय दिया है। तदनुसार कवि मोढेरक ग्रामवासी धरादेव ब्राह्मण और उसकी पत्नी विद्युत के मुंजाल नाम के पुत्र थे। बाल्यावस्था में ही विरक्त होकर मुंजाल ने जैनी दीक्षा ग्रहण कर ली। उसके गुरु चन्द्रगच्छीय हरिभद्रसूरि ने दीक्षा का नाम बालचन्द्र रखा। बालचन्द्र ने अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान् पद्मादित्य से शिक्षा ग्रहण की थी तथा वादिदेवगच्छ के उदयप्रभसूरि से सारस्वत मंत्र प्राप्त किया था जिसके फलस्वरूप वह महाकवि बन प्रस्तुत काव्य रच सका ।
दीक्षागुरु हरिभद्र ने अपने जीवन के अन्तिम क्षणों में बालचन्द्र को अपने पद पर-आचार्य पद पर-प्रतिष्ठित किया । प्रबंधचिन्तामणि में बतलाया गया है कि वस्तुपाल ने बालचन्द्र की कवित्वशक्ति से प्रसन्न होकर उनके आचार्यपद महोत्सव में एक सहस्र द्रम्म खर्च किये थे। बालचन्द्रसूरि ने 'करुणावज्रायुध' नामक पाँच अंकों का एक नाटक भी लिखा है जो वस्तुपाल की एक संघयात्रा के समय शत्रुजय में यात्रियों के विनोदार्थ आदिनाथ के मन्दिर में दिखाया गया था। इसके अतिरिक्त बालचन्द्रसूरि ने आसड कविकृत 'विवेकमंजरी' तथा 'उपदेशकंदली' नामक ग्रन्थों पर टीकाएँ भो लिखी। वसन्तविलास कवि की अन्तिम कृति है और वह वस्तुपाल की मृत्यु के पश्चात् लिखी गई थी क्योंकि इसमें वस्तुपाल के स्वर्गगमन का वर्णन है। वस्तुपाल की मृत्यु सं० १२९६ में हुई थो। इस काव्य की रचना वस्तुपाल के पुत्र जैत्रसिंह के मनोविनोद के लिए को थी। जैत्रसिंह अपने पिता के जीवनकाल में ही सं० १२७९ में खम्भात का गवर्नर बनाया गया था। तब उसकी आयु २५ वर्ष के लगभग रही होगी और वस्तुपाल की मृत्यु के समय उसकी अवस्था ४२-४३ वर्ष की रही होगी। यदि वह ८० वर्ष की पूर्णायु पाकर मरा था तो उसकी मृत्यु सं० १३३३-३४ के लगभग हुई होगी। चूँकि इस काव्य की रचना जैत्रसिंह के जीवनकाल में ही हो गई थी अतः इसकी रचना का समय सं० १२९६ से सं० १३३४ का मध्यवर्तीकाल मानना चाहिए।
वस्तुपाल के जीवन पर आश्रित दूसरा ऐतिहासिक काव्य है संघपतिचरित्र अपरनाम धर्माभ्युदयकाव्य । इसके प्रथम सर्ग में वस्तुपाल की वंशपरम्परा तथा वस्तुपाल के मन्त्री बनने का निर्देश है तथा अन्तिम सर्ग में वस्तुपाल की संघयात्रा का ऐतिहासिक विवरण दिया गया है। यह काव्य अधिकांश धर्म
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