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________________ ऐतिहासिक साहित्य का लौटकर धवलक्कक वापिस आने का वर्णन किया गया है। अन्तिम चौदहवें सर्ग में वस्तुपाल द्वारा किये गये अनेक धर्मकार्यों का विवरण दिया गया है तथा माघ कृष्णा पञ्चमी सोमवार सं० १२९६ प्रातः सद्गति जाने का वर्णन किया गया है। इसमें रूपकतत्व का आश्रय लिया गया है। . इस काव्य में कवि ने चरित्रचित्रण की ओर विशेष ध्यान दिया है। इसमें वस्तुपाल, तेजपाल, वीरधवल, शंख आदि अनेक पात्र हैं पर वस्तुपाल के उदात्त चरित्र का चित्रण ही इस काव्य का उद्देश्य है । प्राकृतिक चित्रण भी इस काव्य में अच्छी तरह किया गया है। हाँ, इसमें कवि-परम्परा-सम्मत सौन्दर्य-चित्रण नहीं जैसा है। इसो तरह सामाजिक चित्रण करनेवाली विशेष सामग्री इसमें नहीं है। पर तत्कालीन राजनीतिक इतिहास जानने की इसमें प्रचुर सामग्री है। कवि ने धार्मिक सिद्धान्तों का भी कहीं वर्णन नहीं किया परन्तु उसने धर्म की आराधना में तीर्थयात्रा को विशेष महत्व दिया है। ___ रसों की अभिव्यक्ति की दृष्टि से यह वीर-रस-प्रधान काव्य है। पाँचवें सर्ग में वीर-रस की अभिव्यक्ति सुन्दर ढंग से हुई है। युद्ध-प्रसंग में रौद्ररस और वीभत्स-रस की झाँकी भी दृष्टिगत होती है। दसवे से तेरहवें सगे तक वस्तुपाल की धर्मवीरता एवं दानवीरता का चित्रण किया गया है। छठे, सातवें एवं आठवें सर्गों में संयोग-शृंगार का परिपाक हुआ है। इस काव्य की भाषा सरल, कोमल एवं स्वाभाविक तथा प्रौढ़ एवं परिमार्जित है। सामान्यतया भाषा भावानुकूल है। यत्र-तत्र सूक्तियों का प्रयोग भी भाषा में हुआ है। बारहवें सर्ग में कवि ने शब्दक्रीड़ा एवं पाण्डित्य प्रदर्शन करते हुए दुरूह पद्यों का प्रयोग किया है। भाषा को सजाने के लिए विविध अलंकारों की योजना भी कवि ने प्रचुर मात्रा में की है। शब्दालंकारों में अनुप्रास, यमक एवं वीप्सा का तथा अर्थालंकारों में उपमा और उत्प्रेक्षा का प्रचुर प्रयोग हुआ है। अन्य अलंकारों में अपह्नति, असंगति, विरोध, अर्थान्तरन्यास, अतिशयोक्ति का प्रयोग द्रष्टव्य है। छन्दों के प्रयोग में कवि ने महाकाव्य परम्परा को अपनाया है। प्रत्येक सर्ग में एक छन्द का प्रयोग और सर्गान में छन्दपरिवर्तन किये गये हैं। कुछ सर्गों में विविध छन्दों की योजना भी हुई है। इस तरह इस काव्य में २९ छन्दों का प्रयोग हुआ है। इनमें उपजाति का प्रयोग सबसे अधिक हुआ है। १. सर्ग १०.७, १७, २३, ११. ८२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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