________________
जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ५. मारवाड़ देश के राजाओं और लूणसाक नरेश के बीच युद्ध, वीरधवल का मारवाड़ के राजाओं की सहायता के लिए जाना । भृगुकच्छ के शासक शंख के आक्रमण का वस्तुपाल द्वारा सामना करना और उसे परास्त करना।
६. वस्तुपाल का संघसहित श@जय और गिरिनार-यात्रा में जाना । वस्तुपाल की मृत्यु माघ कृष्णा पञ्चमी सं० १२९६ सोमवार को शत्रुजय में होना ।
वैसे वसन्तविलास की कथावस्तु छोटो है पर उसका महाकाव्योचित विधि से विस्तार किया गया है। प्रारंभिक चार सगं कथानक की भूमिकामात्र प्रस्तुत करते हैं। पहले में कवि ने काव्य की महत्ता पर प्रकाश डालकर अपना परिचय दिया है। दूसरे सर्ग में अणहिल्लपत्तन नगर का वर्णन तथा तृतीय में मूलराज से लेकर भीम द्वितीय तक चौलुक्यवंशी राजाओं का परिचय तथा बघेला वीरधवल और उसके पूर्वजों का परिचय देकर वीरधवल द्वारा वस्तुपाल-तेजपाल की मन्त्रिपद पर नियुक्ति का वर्णन किया गया है। चौथे में वस्तुपाल के गुणों का वर्णन करके वीरधवल द्वारा उसको खम्भात का शासक नियुक्त किये जाने का विवरण प्रस्तुत किया गया है। पाँचवे सर्ग से कथा को गति मिलती है। इसमें लूणसाक नृपति के साथ मारवाड़नरेश का युद्ध छिड़ने और वीरधवल का ससैन्य जाने का वर्णन है। इसी सर्ग में लाटनरेश शंख के धवलक्कक पर आक्रमण करने और वस्तुपाल द्वारा उसे पराजित करके भगाने का वर्णन है। छठे सर्ग में कवि परम्परानुसार ऋतुवर्णन, वैसे ही सातवें में पुष्पावचय, दोलाकोड़ा एवं जलक्रीड़ा का वर्णन तथा आठवें में चन्द्रोदय का वर्णन किया गया है। नवे सूर्योदय नामक सर्ग में रात्रि में निद्रामग्न वस्तुपाल स्वप्न देखता है जिसमें एक पैर का धर्म लंगड़ाता हुआ वस्तुपाल के पास आकर प्रार्थना करता है कि कलियुग के प्रभाव से मैं एक पाद का रह गया हूँ' अतः आप तीर्थयात्राएँ करके मेरी व्याकुलता को दूर करें। वस्तुपाल उसकी प्रार्थना स्वीकार कर लेते हैं। इसी समय प्रातःकाल हो जाता है और वस्तुपाल जाग जाते हैं। इसमें कथानक का टूटा हुआ सूत्र कवि ने फिर पकड़ा है। ____ दसर्वे सर्ग से लेकर तेरहवें सर्ग तक वस्तुपाल की तीर्थयात्राओं का विस्तृत वर्णन है। दसवें में शत्रुजययात्रा, ग्यारहवें में प्रभासतीर्थयात्रा, बारहवें में रैवतकगिरि वर्णन और तेरहवें में रैवतकयात्रा का वर्णन है। इसी सर्ग में वस्तुपाल
1. यह वर्णन भागवतपुराण ( १. १६-१७ ) के अनुकरण पर है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org