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________________ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वंश का वर्णन मिलता है । हेमचन्द्र इस वंश के विषय में मौन हैं, हालांकि इस वंश के वनराज ने ही अणहिलवाड़ की स्थापना की थी । चावड़ा शाखा के आठ राजाओं के नाम अरिसिंह ने गिनाये हैं : वनराज, योगराज, रत्नादित्य, वैरसिंह, क्षेमराज, चामुण्ड, राहs और भूभट । इनमें से केवल वनराज के विषय में सूचना है कि उसने अणहिलवाड़ में पंचासरा पार्श्वनाथ का मन्दिर निर्माण कराया था जिसका आगे चलकर वस्तुपाल ने जीर्णोद्धार कराया। दूसरे सर्ग में चौलुक्य वंश का वर्णन है जिसमें मूलराज से भीमदेव द्वितीय के राज्यकाल तक का संक्षिप्त विवरण है । भीमदेव द्वितीय के विषय में कहा गया है कि वह चिन्ताओं से बहुत घिरा हुआ था क्योंकि उसके राज्य को सामन्तों और माण्डलिकों ने हड़प लिया था। तीसरे सर्ग में भीम द्वारा बघेला लवणप्रसाद को सर्वेश्वर पद और वीरधवल को युवराज पद तथा मंत्री पद पर वस्तुपाल और तेजपाल की नियुक्ति की सूचना दी गई है। चौथे से ग्यारहवें तक के सर्ग वस्तुपाल के सुकृत्यों, सत्कार्यों से भरे पड़े हैं जिनसे तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक रीतिरिवाजों का दिग्दर्शन मिलता है और काव्य का शीर्षक सुकृत्यों के संकीर्तन द्वारा चरितार्थ किया गया है । ४०४ रचयिता और रचनाकाल - - इस काव्य के रचयिता ठक्कुर अरिसिंह हैं । प्रबंधकोश के अनुसार यह कवि वायङ्गच्छ के जिनदत्तसूरि का अनुयायी था । अरिसिंह जैन श्रावक होते हुए भी सुप्रसिद्ध गद्यकार और कवि मुनि अमरचन्द्र का गुरु था । ये दोनों साहित्यिक एक गृहस्थ और दूसरा साधु परस्पर मिलकर काम करते थे । अरिसिंह वस्तुपाल का प्रिय कवि था तथा वघेलानरेश के राजदरबारियों में एक था । काव्य के पढ़ने से ज्ञात होता है कि इसकी रचना तत्र की गई थी जब वस्तुपाल अपनी सत्ता के शिखर पर था । फिर भी वस्तुपाल के जीवनकाल के वि० सं० १२७८ ( सन् १२२२ ई० ) के बाद ही इसकी रचना होना चाहिए क्योंकि इसमें आबू पर मल्लिनाथ की बनी कुलिका का वर्णन है जो उस वर्ष बनी थी। साथ ही इसे वि० सं० १२८८-८९ पूर्व बनी होना चाहिए क्योंकि इसमें वस्तुपाल द्वारा किये सभी कार्यों का वर्णन नहीं है । इस काव्य के अतिरिक्त अरिसिंह की अन्य कृतियों का पता नहीं । १. बुहलर, इण्डियन एण्टीक्वेरी, भाग ३१, पृ० ४८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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