________________
ऐतिहासिक साहित्य
बस्तुपाल - तेजपाल का कीर्तिकथा - साहित्य :
चौक्य वंश के परवर्ती नरेश द्वितीय भीम के समय का गुजरात का इतिहास प्रमाण में सबसे अधिक विगतवाला और अधिक विश्वसनीय सामग्री ( साहित्यिक, पुरातत्वीय ) वाला है । इसका कारण उस समय में हुए चाणक्य के अवतार के समान गुजरात के दो महान् और अद्वितीय बन्धुमन्त्री वस्तुपालतेजपाल थे । इन दोनों भाइयों के शौर्य, चातुर्य और औदार्य आदि अनेक अद्भुत गुणों को लेकर इनके समकालीन गुजरात के प्रतिभावान् पण्डितों और कवियों ने इनकी कीर्ति को अमर करने के लिए जितने काव्य, प्रबंध और प्रशस्तियों आदि की रचना की है उतने भारत में दूसरे किसी राजपुरुष के लिए नहीं लिखे गये हैं ।
समकालिक काव्यों में जैन रचनाएँ सुकृतसंकीर्तन और वसन्तनिवास हैं । सुकृतसंकीर्तन :
इस काव्य में ११ सर्ग और ५५३ पद्य हैं । इसमें महामात्य वस्तुपाल के जीवन और कार्यकलापों का, विशेषकर उसके धार्मिक और लोकप्रिय कार्यों का अधिक वर्णन है ।
इसके प्रथम सर्ग में अगहिलवाड़ में राज्य करनेवाले प्रथम राजवंश चापोत्कट या चावड़ा राजाओं की वंशावली और उक्त नगर का वर्णन दिया गया है । यहाँ यह विशेष उल्लेखनीय है कि यह पहला ऐतिहासिक काव्य है जिसमें चावड़ावंश का वर्णन है । इसके बाद उदयप्रभकृत सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी में ही उक्त
४०३
१. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, ग्रन्थाङ्क ५१, सं० १९७४; इण्डियन एण्टीक्वेरी, भाग ३१, पृ० ४७७ प्रभृति; जिनरत्नकोश, पृ० ४४३ ; इस काव्य का मूल, जर्मन अनुवाद एवं भूमिका जी० बुहलर ने जर्मन पत्रिका सित्सुंगवेरिख्ते ( भाग ११९, सन् १८९९ ) में निकाले थे । जर्मन अनुवाद और भूमिका का अंग्रेजी अनुवाद इ० एच० बर्जेस ने १९०३ में इण्डियन एण्टीक्वेरी पत्रिका में प्रकाशित किये, पीछे अलग पुस्तिका के रूप में जर्मन और अंग्रेजी पाठ प्रकाशित हुए; सिंघी जैन ग्रन्थमाला,
ग्रन्थांक ३२.
२. चावड़ावंश का प्राचीनतम शिलालेखीय उल्लेख वि० सं० १२०८ ( ११५२ ई० ) की वडनगर की कुमारपालप्रशस्ति में मिलता है । चावड़ों की वंशावली के लिए देखें- इण्डियन एण्टीक्वेरी.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org