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________________ ४०२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भोज में अपनी जैसी दाण्डित्यपूर्ण आत्मा देखना था और उनके मन में परमार मनीषी के प्रति इतना बड़ा सम्मान था कि उसका पतन - वर्णन करने में वे अपने को असमर्थ पाते थे। विस्मय है कि द्वयाश्रय का सबसे अधिक अनैतिहासिक भाग सिद्धराज के राज्यकाल का वर्णन है । उसकी मालवा विजय और धार्मिक कार्यों के अतिरिक्त ऐसी कोई ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं जिसमें दैवी चमत्कारों की बातें न हों । १० वें सर्ग में हेमचन्द्र ने कर्ण द्वारा देवी पूजा, देवी का प्रकट होकर पुत्रप्राप्ति का वरदान, फलस्वरूप जयसिंह का पुत्ररूप में उत्पन्न होना आदि चामत्कारिक बातों का अगले चार सर्गों तक वर्णन किया है । १३वें सर्ग में चरक की पराजय और १४वें में परमार यशोवर्मा के साथ युद्ध और १५ वें में जयसिंह को पुत्र प्राप्ति न होने और कुमारपाल के उत्तराधिकारी होने आदि की घटनाएँ वास्तविक होते हुए भी अतिमानवीय तत्वों के विशेष पुट के कारण अयथार्थ जैसी लगती हैं। आश्चर्य है कि हेमचन्द्र ने यह सब उस जयसिंह सिद्धराज के विषय में लिखा है जिसके दरबार में उन्होंने अपने जीवन के उत्तम वर्ष बिताये थे और कीर्ति प्राप्त की था । यह मानना ठीक नहीं कि उन्होंने इतिहास लिखना चाहा था । यह बहुत सम्भव है कि व्याकरण के नियमों के उदाहरणों ने इसके बदले उन्हें दैवतकथा ( Myth ) लिखने के लिए बाध्य किया था । फिर भी इन मर्यादाओं के भीतर द्वयाश्रय में हेमचन्द्र ने कामचलाऊ ढंग से एक अच्छा इतिहास प्रस्तुत किया है और यह स्पष्ट है कि हेमचन्द्र ने विषय का चुनाव और त्याग विचारपूर्वक किया है । द्वयाश्रय को हलायुध के कविरहस्य जैसी अन्य कृतियों से भिन्न ही मानना चाहिए । कविरहस्य में धातुरूपों का छन्दात्मक निदर्शन और साथ ही राष्ट्रकूट नून कृष्ण तृतीय का गुणवर्णन प्रस्तुत है पर उसमें शासक नृप की किसी ऐतिहासिक घटना का वर्णन नहीं है । इसके विपरीत द्वयाश्रय में निश्चित रूप से अनेक ऐतिहासिक विवरण मिल जाते हैं । द्वयाश्रय की हम बिना पक्षपात के इतिहास के रूप में कल्हण की राजतरंगिणी से तुलना कर सकते हैं। इतिहास के रूप में यह विल्हण के विक्रमांकदेवचरित के समकक्ष भी बैठता है । द्वयाश्रयकाव्य वर्तमान अर्थ में समझा जानेवाला इतिहास भले न हो पर अपनी मर्यादा के भीतर अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ देकर वह आधुनिक वैज्ञानिक इतिहासलेखक का श्रद्धापात्र बन सका है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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