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ऐतिहासिक साहित्य
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कथन है कि इस अवसर पर चाहड कुमारपाल के विरुद्ध लड़ा था। इससे यह मालूम होता है कि चाहड वास्तविक व्यक्ति था। यह कहना जरूरी है कि मूलराज, भीम और अर्णोराज के मित्र राजाओं के नाम जो द्वथाश्रयकाव्य में मिलते हैं वे अन्य स्रोत से बिल्कुल नहीं मालूम होते हैं।
द्वथाश्रयकाव्य का दूसरा रूप उसका महाकाव्यत्व है जिसे हेमचन्द्र ने महाकाव्योचित सारभूत तत्वों से सजाया भी है। इनसे इतिहास का कोई सम्बन्ध नहीं परन्तु उस काल के धार्मिक और सामाजिक रीति-रिवाजों को जानने की प्रचुर सामग्री मिलती है।
यहाँ हम हेमचन्द्र द्वारा उपेक्षित ऐतिहासिक बातों पर संक्षेप में विचार करते हैं। हम यहाँ उन राजाओं के राज्यकाल पर विचार न करेंगे जिनका हेमचन्द्र को साक्षात् ज्ञान न था । हेमचन्द्र सिद्धराज और कुमारपाल के राज्य में रहते थे इसलिए हम आशा करते हैं कि उन्हें इन दोनों नृपों की गतिविधियों का साक्षात् ज्ञान था । अगर हम उनके द्वारा दिये विवरणों का विचार न करें तो कुछ कमोबेश रूप में कुमारपाल के राज्य का वर्णन ठीक ही किया गया है परन्तु कुमारपाल के प्रारंभिक जीवन का वणन नहीं दिया गया। संभवतः हेमचन्द्र उसके प्रारंभिक जीवन के विषय में इसलिए मौन रहे कि सिद्धराज जयसिंह द्वारा वह बहुत समय तक आतंकित रहा। पर किसी इतिहासलेखक के लिए सारभूत बातों की उपेक्षा करना उचित बहाना नहीं हो सकता। सम्भवतः ऐसा लगता है कि हेमचन्द्र ने जानकर उन बातों को छोड़ा है जो कि उन चौलुक्य राजाओं की कीर्ति के लिए अपमानजनक है। उसने जयसिंह सिद्धराज के पूर्वज नृप भीम और धारानरेश भोज के बीच के सम्बन्ध को भी मौन रखकर टाल दिया है जिसे मेरुतुंग, सोमेश्वर आदि इतिहासलेखकों ने विस्तार से लिखा है। भोज के ऊपर भीम की विजय चौलुक्य इतिहास के लिए विशेष घटना थी। हेमचन्द्र सर्वप्रथम विद्वान् है जिसने भोज का उल्लेख किया है और वह परमारनरेश के दुःखान्त से निश्चित रूप से परिचित था। इस तथ्य का उसने एक आवृत संकेत मात्र कर दिया जब वह कहता है कि लक्ष्मीकण ने भीम को भोज की स्वर्णमण्डपिका दी थी। इस आवृत संकेत के पोछे हेमचन्द्र का भाव
१. विशेष के लिए देखें-२० चु० मोदी, संस्कृत द्वयाश्रयकाव्यमां मध्यकालीन
गुजरातनी सामाजिक स्थिति.
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