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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास २. महाकाव्य का उद्देश्य धर्म, अर्थ और काम के फल को प्रदर्शित करना है। इसलिए इसका कथानक विशाल होना चाहिये और किसी महती घटना पर आश्रित होना चाहिये।
३. महाकाव्य में इतिहास एवं पुराण से सम्बद्ध अथवा परम्परा की दृष्टि . से प्रख्यात महापुरुषों का चरित्रचित्रण होना चाहिये। कथानक अनुत्पाद्य ( इतिहास-पुराणाश्रित) तथा उत्पाद्य ( कविकल्पनाजन्य ) रीति से दो प्रकार का होता है । अनुत्पाद्य का केवल कथापंजर लेकर कवि अपनी कल्पना से महाकाव्य को सुगठित करता है।
४. कथानक का विस्तार संगठित और व्यवस्थित रूप से करने के लिए पाँच नाट्यसंधियों की योजना करनी चाहिये ।।
५. जीवन के व्यापक और गम्भीर अनुभवों का चित्रण करने के लिए महाकाव्य में अवान्तर कथाओं की योजना करनी आवश्यक है।
६. नायक के अतिरिक्त प्रतिनायक और गौणपात्रों की अवतारणा भी महाकाव्य में होनी चाहिये।
७. महाकाव्य में अतिप्राकृत और अलौकिक तत्त्वों का होना आवश्यक है। अलौकिक कार्य देवता, राक्षस, यक्ष, व्यन्तर आदि द्वारा ही नहीं बल्कि मनुष्यों और मुनियों द्वारा भी दिखाना आवश्यक है।
८. महाकाव्य में कविसम्प्रदाय-सम्मत रात्रि, प्रातःकाल, मध्याह्न, संध्या, षटऋतु, पर्वत, वन, उद्यान-क्रीड़ा, जल-क्रीड़ा तथा अन्य बातों का वर्णन होना चाहिये।
९. काव्य के आरम्भ में मंगलाचरण, वस्तु-निर्देश, सजन-प्रशंसा और दुर्जन-निन्दा होना आवश्यक है। काव्य के अन्त में हेमचन्द्राचार्य के मत से कवि को अपना उद्देश्य प्रकट करना चाहिये ।
१०. महाकाव्य के मूल तत्व के रूप में रस का स्थान प्रमुख है। सभी आचार्यों ने महाकाव्य में नवरसों का विधान अनिवार्य माना है। विश्वनाथ ने रस का क्षेत्र सीमित करते हुए कहा है कि शृङ्गार, वीर और शान्त में से कोई एक रस प्रधान तथा अन्य रस गौण होना चाहिये ।
१. महापुराणसम्बन्धिमहानायकगोचरम् ।
निवर्गफलसन्दर्भ महाकाव्यं तदिप्यते ॥ आदिपुराण, १. ९९.
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