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प्रास्ताविक
१. महाकाव्य का उद्देश्य महान् होता है, वह आध्यात्मिक तथा भौतिक दोनों क्षेत्रों को स्पर्श करता है । उसका उद्देश्य कथानक के देना, आनन्द प्रदान करना और नवीन मानव सत्यों का मानव समाज का निर्माण करना है ।
२. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रख्यात, विशाल एवं महत्त्वपूर्ण कथा - नक चुनना चाहिये जो कि परम्परा प्राप्त कथाओं या ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित हो ।
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३. उक्त उद्देश्यों का प्रतिनिधित्व ऐसे नायक द्वारा होता है जिसे महापुरुष, शूरवीर और विजयी होना चहिये । इसके लिए यह आवश्यक नहीं कि वह मानव ही हो, देवता आदि अलौकिक व्यक्ति भी नायक हो सकते हैं ।
माध्यम से शिक्षा उद्घाटन कर नवीन
४. महाकाव्य में जीवन के विविध और समग्र रूप का चित्रण होना चाहिये । इस उद्देश्य के लिए महाकाव्य में गौणपात्रों की अवतारणा, विविध घटनाओं की सृष्टि, अवान्तर कथाओं की योजना आदि अनेक तत्त्वों के सम्मिश्रण से संघटित कथानक का निर्माण करना चाहिये ।
५. महाकाव्य के कथानक की पूर्व और अपर घटनाओं को एक दूसरे से सम्बद्ध होना चाहिये । कथानक को अन्वितिपूर्ण, गतिशील और सुसंगठित होना चाहिये ।
६. महाकाव्य में अतिप्राकृत और अलौकिक तत्त्वों का समावेश होना. सम्भव है । ईलियड, औडिसी, पैराडाइज लास्ट जैसे महाकाव्यों में भूत, प्रत, देवता आदि अतिप्राकृत पात्रों और उनके अलौकिक कार्यों का समावेश हुआ है ।
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७. महाकाव्य की शैली उदात्त, गम्भीर और मनोहारी होनी चाहिये । ८. महाकाव्य को छन्दोबद्ध रचना होना चाहिये । छन्द का प्रयोग वर्ण्य. विषय के अनुकूल होना चाहिये तथा आदि से अन्त तक एक ही छन्द का प्रयोग होना चाहिये ।
भारतीय काव्यशास्त्रियों के अनुसार महाकाव्य में निम्नलिखित तत्त्व होने चाहिये
१. उसे सर्ग, आश्वास या लम्भकों से बद्ध होना चाहिये । सर्गों को न अधिक विस्तृत और न अधिक लघु होना चाहिये । महाकाव्य में कम-से-कम आठसर्ग होने चाहिये ।
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