SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३९४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास ३. इनमें नायक की वीरता या माहात्म्य-प्रदर्शन करने के लिए दिग्विजय, ससंघ यात्राओं आदि के काल्पनिक विवरण प्रदर्शित किये गये हैं। कहीं-कहीं नायक का उत्कर्ष प्रकट करने के लिए प्रतिनायक की कल्पना भी की गई है। ४. अधिकांश काव्यों में घटनाओं की तिथियों के विवरण इतिहाससम्मत ही हैं, कुछ में नहीं। ५. इनमें नायक की वंशपरंपरा और कुलोत्पत्ति के विवरण पौराणिक ढंग पर दिये गये हैं। जैनों के ऐतिहासिक काव्य हरिषेण की समुद्रगुप्त-सम्बंधी इलाहाबाद-प्रशस्ति, बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षवर्धन-प्रशस्ति के रूप में हर्षचरित, बिल्हणकृत विक्रमांकदेवचरित व कल्हण की राजतरंगिणी के समान ही बड़े उपयोगी हैं। यहाँ उनका परिचय प्रस्तुत किया जाता है । गुणवचनद्वात्रिंशिका : सिद्धसेन दिवाकर के विषय में माना जाता है कि उन्होंने बत्तीस द्वात्रिंशिकाओं ( ३२ पद्यों का काव्य ) की रचना की थी। इनमें से २१ प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से पाँच में कर्ता का नाम अंश या पूर्ण रूप में मिलता है। १, २ और १६वी द्वात्रि के अन्तिम पद्य में 'सिद्ध' शब्द मिलता है जब कि ५वीं और २१वीं में पूरा नाम सिद्धसेन । शेष में नाम का संकेत या चिह्न भी नहीं दिया गया है परन्तु परम्परा और शैली को देखते हुए उनके कर्ता सिद्धसेन के होने में गम्भीर आपत्ति नहीं हो सकती। ___इनमें से ११वीं द्वात्रिंशिका प्रशस्ति के अनुसार 'गुणवचन-द्वात्रिंशिका' है ।' यह एक राजा की प्रशस्ति है जो उसे त्वया, भवान् , त्वत् , तव, भवता और त्वा सर्वनामों द्वारा एवं मध्यम पुरुष में क्रियाओं-सन्तुष्यसे, वहसि, सुरायसे, हरसि, करोसि और असि-द्वारा तथा नृपते, नरपते, नरेन्द्र, नृप, राजन् और क्षितिपते सम्बोधनों द्वारा लक्षित किया गया है। इस विरुद में केवल २८ पद्य हैं। यह सम्भव है कि हमारे लिए महत्त्व के चार पद्य खो गये हों या कुछ १. मध्यभारती पत्रिका, १, जुलाई १९६२, में मूल संस्कृत पाठ तथा अंग्रेजी अनुवाद डा. हीरालाल जैन द्वारा दिया गया है। इसके तुलनात्मक टिप्पण महत्त्वपूर्ण हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy