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ऐतिहासिक साहित्य
जैनेतर अनुश्रुतियों एवं पुरातत्त्व-सामग्री के साथ समन्वयात्मक अध्ययनकर भारतीय इतिहास के प्रागैतिहासिक, सिन्धुघाटी सभ्यता, वैदिक एवं औपनिषदिक युगों की प्रवृत्तियाँ जानी जा सकती हैं। जैन अनुश्रुतियों के चौबीस तीर्थंकरों में से अन्तिम तीन तीर्थंकर-अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और वर्धमान महावीरऐतिहासिक व्यक्ति सिद्ध हुए हैं। महावीरोत्तर काल में जैनसंघ के संगटन, व्यवस्था, मतभेद, सम्प्रदायों, उपसम्प्रदायों एवं पन्थों आदि के उदय से वर्तमान काल तक क्रमिक प्रामाणिक इतिहास, जैनधर्मपरायण नरेशों, सामन्तों, राजनीतिज्ञों, शासकों-प्रशासकों, सेनानायकों और योद्धाओं का इतिहास, देश की राजनीति और स्वातन्त्र्य संग्राम में तथा नवराष्ट्र निर्माण में जैनों के योगदान की कहानी, जैन तीर्थों, सांस्कृतिक एवं कलाकेन्द्रों का इतिहास, जैन पर्वो और त्यौहारों का इतिहास जानने के बहुविध ऐतिहासिक उपादान-ऐतिहासिक काव्य, प्रबन्ध साहित्य, प्रशस्तियाँ, पट्टावलियाँ, गुर्वावलियाँ, शिलालेख, मूतिलेख, विज्ञप्तिपत्र, तीर्थमालाएँ आदि उक्त मामग्री के विविध अंग हैं।
स्व० डा० काशीप्रसाद जायसवाल ने जैनों की ऐतिहासिक चेतना को प्रशंसा करते हुए लिखा है कि जैनों ने कोई २५०० वर्ष की संवत्गणना का हिसाब भारतीयों में सबसे अच्छा रखा है। इससे विदित होता है कि पुराने समय में ऐतिहासिक परिपाटी को वर्षगणना हमारे देश में थी। जब वह और जगह लुन
और नष्ट हो गई तब केवल जैनों में बच रही। जैनों की गणना के आधार पर हमने पौराणिक और ऐतिहासिक बहुत सी घटनाओं को. जो बुद्ध और महावीर के समय से इधर की हैं, समयबद्ध किया और देखा कि उनका ठोक मिलान सुज्ञात गणना से हो जाता है। कई एक ऐतिहासिक बातों का पता जैनों के ऐतिहासिक अभिलेखों, प्रशस्तियों एवं पट्टावलियों में ही मिलता है। ऐतिहासिक महाकाव्यों की प्रमुख प्रवृत्तियाँ : ___ संस्कृत के अन्य ऐतिहासिक महाकाव्यों की भाँति जैन महाकाव्यों में भी निम्न प्रकार की प्रवृत्तियाँ परिलक्षित होती हैं :
१. इनमें चरित्र नायक राजा-महाराजा ही नहीं होते बल्कि सन्त, महन्त एवं महामंत्री और धनो मानी सेठ भी होते हैं।
२. इनके रचयिता राज्याश्रित या अन्य धनी-मानी लोगों के आश्रित होते हैं और आश्रयदाता की प्रशंसा करने की उनमें प्रवृत्ति होती है। इसलिए उनके रचे काव्यों में नायक की पराजय या अप्रिय बातें नहीं होती।
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