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________________ ३८८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास _प्रारम्भ में लोकव्यवहार में प्राणियों के भी दृष्टान्त दिये जाते थे। प्राणियों के दृष्टान्त सुनने में हर एक के लिए सुगम एवं ग्राह्य होते हैं। प्राणी भी मानववत् व्यवहार कर सकते हैं, कभी किसी समय में प्राणियों एवं मानव में इस दृष्टि से कोई अन्तर न था आदि विश्वास अशिक्षित जनसाधारण में रहा था। पंचतंत्र, हितोपदेश की कहानियों को 'नीतिकथा' कहा गया है। पर दुर्भाग्य से मूल पंचतंत्र अप्राप्य है। इसके केवल उत्तरकालीन संस्करण ही मिलते हैं। जैन कथाकारों ने पंचतंत्र की शैली और विषय से प्रभावित होकर कई कथाकोश लिखे हैं। मलधारी राजशेखरकृत 'कथासंग्रह' में पंचतंत्र के समान ही कहानियों के दर्शन होते हैं। हेमविजयकृत 'कथारत्नाकर' में भर्तृहरि के शतकों और पंचतंत्र आदि से अनेक सूक्तियाँ ली गई हैं। इतना ही नहीं, पंचतंत्र के जैन संस्करण भी प्राप्त होते हैं। पंचतंत्र के विशिष्ट अध्येता जर्मन विद्वान् हर्टल के अनुसार पंचतंत्र के सर्वाधिक लोकप्रिय संस्करण जैन विद्वानों द्वारा ही तैयार किये गये हैं। एक ऐसा संस्करण है जिसे उसके सम्पादक श्री कोसे गार्टन ने Textus Simplicior नाम से कहा है। हटल और अमेरिकन विद्वान् एजर्टन के अनुसार इसके लेखक कोई अज्ञातनामा जैन विद्वान थे। उनका समय ९०० से ११९९ तक माना गया है। इसमें पंचतंत्र की अनेक कथाओं का रूपान्तर हो गया है। पंचाख्यान या पंचाख्यानक-श्री एजर्टन के अनुसार इसकी रचना तंत्राख्यायिक एवं Textus Simplicior के आधार से की गई है। इसके रचयिता जैन मुनि पूर्णभद्र हैं। इस संस्करण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें पंचतंत्र की कथाओं के लौकिक पक्ष को कोई हानि नहीं पहुंचाई गई। इसमें पंचतंत्र का नीतिकथात्मक रूप सुरक्षित रखा गया है।' इस ग्रन्थ के अन्त में ८ पद्यों की एक प्रशस्ति दी गई है जिसमें लिखा है कि विष्णुशर्मा ने सूक्तियों से भरे कथाओं से युक्त नृपनीतिशास्त्र पंचतंत्र की रचना की थी जो कालान्तर में विशीर्णवर्ण हो गया था। इसे मंत्री सोमशर्मा के अनुरोध से नृपतिनीति-विवेचन के लिए श्री पूर्णभद्रसूरि ने संशोधित किया। १. डा० हर्टल, दि पंचतंत्र , भाग २, १९०८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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