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कथा-साहित्य विट) कथाओं का सुन्दर उदाहरण है। इसका उद्देश्य यह बतलाना है कि जिस तरह धूर्तों और ठगों का रहस्य जान उनसे रक्षा करना चाहिए उसी तरह मुखों की मूर्खता से भी रक्षा करना आवश्यक है। इसमें मुग्धकथाओं के बहाने जीवन में सफलता के आकांक्षी पुरुष को अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा दी गई है। कथाकार ने ग्रन्थरचना का उद्देश्य स्वयं प्रकट किया है : संसार में निःश्रेयस की प्राप्ति के इच्छुक लोगों को सदैव अपने सदाचरण के ज्ञान में वृद्धि करते रहना चाहिए। यह सदाचरण का परिज्ञान मूर्खजनों के चरित पढ़कर हो सकता है । इन चरित्रों को लेखक अपनी बुद्धि से कल्पित घटना-प्रसंगों के अनर्थ-दर्शन द्वारा अभिव्यक्त करता है। इस प्रकार की अभिव्यक्ति तथा मूर्खजनों द्वारा व्यवहृत आचरण के परिहार के लिए लेखक ने भरटद्वात्रिंशिका की रचना की है।
इस संग्रह में अनेकों लंपटों, वंचकों, धूर्तों के सरस चित्रण देखने में आते हैं। इसमें अधिकांश कहानियाँ शैवपन्थी साधुओं की उपहासात्मक हैं। पाँचवीं कथा में ग्राम कवि की शैव उपासक से तुलना की गई है।' साँतवीं में एक मूर्ख शिष्य की कथा है जिसने धोरे-धीरे ३२ बाटियाँ खा ली और शैव गुरु को एक भी न दी। तेरहवीं में स्वर्ग की गाय की कहानी है और सोलहवीं में एक जटाधारी शैव चेले की।
इस प्रकार की प्रकीर्ण कहानियाँ आगमों की नियुक्तियों, चूर्णियों एवं भाष्यों में बिखरी पड़ी हैं। राजशेखरसूरि के कथाकोश अपरनाम विनोदकथासंग्रह में कई कहानियाँ इस श्रेणी की हैं। नीतिकथा-साहित्य :
नीतिकथा का अर्थ है नीतिविषयक पाठ सिखानेवाली कहानी जिसमें अधिकतर पात्र मानवेतर क्षुद्रप्राणी होते हैं। नीतिकथा एक कल्पित कथा है, उसके वाच्य-कथानक में किसी प्रकार की यथार्थता नहीं रहती।
१. भरटक तव चट्टा लंब पुट्ठा समुद्धा।
न पठति न गुणंते नेव कव्वं कुणते ॥ वयमपि न पठामो किन्तु कन्वं कुणामो। तदपि भुख मरामो कर्मणा कोऽत्रदोषः ॥ मूर्खशिष्यो न कर्तव्यो गुरुणा सुखमिच्छता । विडम्बयति सोत्यन्वं यथा बटकभक्षकः ॥
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