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________________ ३८९ कथा-साहित्य इस कार्य में प्रत्येक अक्षर, पद, वाक्य, कथा और श्लोक का संशोधन किया गया है। अन्त में इस ग्रन्थ का परिमाण ४६०० श्लोक बतलाया गया है और रचनासंवत् १२५५, फाल्गुन वदि तृतीया रविवार बतलाते हुए कहा गया है कि मानो यह जीर्णोद्धार-सा हो । पुरानी रचना का जीर्णोद्धार अर्थात् नया रूप देने के महनीय कार्य को प्रकट करते हुए कवि ने अपनी नम्रता ही प्रकट की है। इसमें जो स्मृतिशास्त्रों से उद्धरण दिये गये हैं वे लौकिक नीतिवाक्यों से भिन्न नहीं हैं। आवश्यकतावश जहाँ जिसका उपयोग हो सका उस कार्य में पूर्णभद्र ने अपना कौशल दिखाया है। हर्टल महोदय ने पंचाख्यानक के महत्त्व को इन शब्दों में प्रकट किया है : अपने सिद्धान्तों का उपदेश करने के लिए बौद्धों ने नीतिकथाओं को भी तोड़मरोड़कर अपनाया है। पंचतंत्र का बौद्ध संस्करण नहीं मिलता, यह कोई संयोग की बात नहीं है। जैन संस्करण पंचाख्यानक में जैनियों ने पुरानी नीतिकथाओं को ही सारे भारतवर्ष में, यहाँ तक कि इण्डोचीन और इण्डोनेशिया तक में, लोकप्रिय बनाया है। संस्कृत तथा अन्य विविध देशी भाषाओं में लिखा हुआ १. कथान्वितं सूक्तविसूक्तं श्रीविष्णुशर्मा नृपनीतिशास्त्रम् ॥ १ ॥ श्रीसोममंत्रिवचनेन विशीर्णवर्णम् , मालोक्य शास्त्रमखिलं खलु पंचतंत्रम् । श्रीपूर्णभद्रगुरुणा गुरुणादरेण, संशोधितं नृपतिनीतिविवेचनाय ॥ २ ॥ प्रत्यक्षरं प्रतिपदं प्रतिवाक्यं प्रतिकथं प्रतिश्लोकम् । श्रीपूर्णभद्रसूरिविंशोधयामास शास्त्रमिदम् ॥ ३ ॥ विण्टरनित्स, हिस्ट्री आफ इण्डियन लिटरेचर, जिल्द ३, भाग १, पृ० ३२१-२४. २. चत्वारीह सहस्राणि तत्परं षट्शतानि च। ग्रन्थस्यास्य मया मानं गणितं श्लोकसंख्यया ॥ ७ ॥ शरबाणतरणिवर्षे रविकरवदिफाल्गुने तृतीयायाम् । जीर्णोद्धारश्वासौ प्रतिष्ठितोऽधिष्ठितो विबुधैः ।। ८ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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