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________________ कथा-साहित्य ३६९ इस कथानक को लेकर एक रचना खरतरगच्छीय अमृतधर्म के शिष्य क्षमाकल्याण ने सं० १८६० में', दूसरी लब्धिविजय' तथा तीसरी मुक्तिविमल (वि० सं० १९७१ माघ शुक्ल पंचमी) ने बनाई है। दो अज्ञातकर्तृक रचनाएँ भी मिलती हैं | मुक्तिविमल की रचना में प्रशस्तिपद्यसहित ३२२ पद्य हैं । सुगन्धदशमीकथा-भाद्रपद शुक्ल १०वीं को सुगन्धदशमी कहते हैं । उस दिन व्रत रखने, धूप आदि से पूजा करने से शारीरिक कुष्ठव्याधि, दुर्गन्धि आदि रोग दूर भाग जाते हैं। इस व्रत के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए संस्कृत, अपभ्रंश और देशी भाषाओं में अनेक रचनाएँ उपलब्ध हैं। उनमें से एक संस्कृत में १६१ श्लोकों में निबद्ध है। इसमें तिलकमती नामक वणिक पुत्री की कथा है जो अपने पूर्वजन्म में मुनि को कड़वी तुम्बी का आहार देकर अनेक दुर्गतियों में गई और इस व्रत के प्रभाव से सुगति पाई। तिलकमती की विमाता के कपटप्रबन्ध की योजना ने इस कहानी को बड़ा कौतुकवर्धक बना दिया है। इसके रचयिता अनेक व्रतकथाओं और तत्त्वार्थवृत्ति आदि ग्रन्थों के लेखक श्रुतसागर हैं जो विद्यानन्दि भट्टारक के शिष्य थे। इनका परिचय अन्यत्र दे चुके हैं। इनका समय सं० १५१३-३० के बीच अनुमान किया जाता है । सुगन्धदशमीकथा पर एक अज्ञातकर्तृक रचना भी मिलती है ।" होलिकाव्याख्यान-यह गद्यात्मक संस्कृत में है। इसके रचयिता अभिधानराजेन्द्र के संकलयिता आचार्य विजयराजेन्द्रसूरि हैं। इसमें फाल्गुन सुदी पक्ष में १. जिनरत्नकोश, पृ० ३१५; हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९१९. २. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, १९१७. ३. दयाविमल ग्रन्थमाला, जमनाभाई भगुभाई, अहमदाबाद, १९१९. ४. भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी से वि० सं० २०२१ में प्रकाशित एवं डा. हीरालाल जैन द्वारा सम्पादित सुगन्धदशमी (अपभ्रंश) कथा के साथ पृ०३०-४८ में हिन्दी अनुवाद सहित. ५. जिनरत्नकोश, पृ० ४४४. १. राजेन्द्रसूरि स्मृति-ग्रन्थ, पृ. ९२-९४, राजेन्द्रप्रवचन कार्यालय, खुडाला से प्रकाशित. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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