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प्रास्ताविक
विभक्त किया जा सकता है : १. शास्त्रीय महाकाव्य, २. ऐतिहासिक महाकाव्य, ३. पौराणिक महाकाव्य । कुछ ऐसे अन्य महाकाव्य हैं जिनमें मिलीजुली शैलियों के भी दर्शन होते हैं। एक ओर शास्त्रीय शैली तो दूसरी ओर ऐतिहा सिक शैली, जैसे हेमचन्द्राचार्य का कुमारपालचरित । इसी तरह एक ओर पौराणिक तो दूसरी ओर ऐतिहासिक, जैसे उदयप्रभसूरि का धर्माभ्युदयकाव्य । कुछ विद्वान् कतिपय पौराणिक महाकाव्यों में प्रेम तत्व और लौकिक आख्यानों की प्रचुरता के कारण उन्हें रोमांचक महाकाव्य कहते हैं पर यथार्थ में देखा जाय तो भारतीय कवियों ने उन कथाओं को भी जो कदाचित् लौकिक प्रेमकहानी है, अच्छी तरह पौराणिक रूप में प्रस्तुत किया है अतः वे पौराणिक महाकाव्य ही हैं।
१. शास्त्रीय महाकाव्य- - ये तीन रूपों में पाये जाते हैं । प्रथम तो वे जो भामह, दण्डी आदि अलंकारविदों द्वारा निरूपित लक्षणग्रन्थों के पूर्व रचे गये थे । उनमें लक्षणशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित महाकाव्य सम्बंधी सभी रूढ़ियों और नियमों का अन्धानुकरण नहीं किया गया। इसमें कवि द्वारा अपनी प्रतिभा का स्वाभाविक उपयोग हुआ है जिससे स्वाभाविकता के साथ कलात्मकता को भी स्थान मिला है । इन्हें काव्यशास्त्र की रीतियों से बँधा न होने के कारण रीतिमुक्त महाकाव्य कहते हैं । इस प्रकार के महाकाव्यों में अश्वघोष के बुद्धचरित और सौन्दरनन्द, कालिदास के रघुवंश और कुमारसंभव उल्लेखनीय हैं ।
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दूसरे प्रकार के रीतिबद्ध महाकाव्य हैं जो काव्यशास्त्रियों द्वारा प्रणीत रीतियों से बद्ध हैं । इनमें कृत्रिमता, दुरुहता और पाण्डित्य प्रदर्शन की प्रचुरता रहती है । ऐसे काव्यों में कथावस्तु की उपेक्षा और अलंकार, वाक्चातुर्य, पाण्डित्यप्रदर्शन एवं कल्पनाओं की भरमार रहती है । भारविकृत किरातार्जुनीयम्, माघकृत शिशुपालवध वस्तुपालकृत नरनारायणानन्द आदि इस श्रेणी के महाकाव्य हैं ।
तीसरे प्रकार के शास्त्रीय काव्यों को हम शास्त्रकाव्य और बह्वर्थक काव्य के रूप में देखते हैं । शास्त्रकाव्य में काव्य के साथ-साथ व्याकरण शास्त्र के नियमों का प्रदर्शन होने से उक्त नाम से कहते हैं, जैसे भट्टिकाव्य, हेमचन्द्र का द्वयाश्रयकाव्य आदि । बह्नर्थक महाकाव्यों में दो या दो से अधिक कथानकों को विविध अलंकारों द्वारा ऐसा बुना जाता है कि पढ़नेवालों को चमत्कार-सा लगता है। ऐसे काव्यों में धनंजय का द्विसंधान और हेमचन्द्र तथा मेत्रविजय के सप्तसंधान प्रभृति अनेक काव्य हैं ।
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