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जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चरितकाव्य इसी विधा के अन्तर्गत आते हैं। जैसे-समरादित्यचरित (प्रद्युम्नसूरिकृत), निर्वाणलीलावती (जिनेश्वरसूरिकृत ) आदि ।' खण्डकया काव्य में जीवन के एक पक्ष का चित्रण होता है, अथवा एक ही घटना को महत्ता दी जाती है। अवान्तर कथाओं की योजना भी प्रायः उसमें नहीं होती। इसे खण्डकाव्य नाम से भी कहा जाता है । कालिदास का मेघदूत और जैन विद्वानों कृत इस विधा के अनेक काव्य इसके अन्तर्गत आते हैं।
मुक्तक काव्य पाठ्य और गेय भेद से दो प्रकार का है। भर्तृहरि के नीतिशतक आदि पाठ्यमुक्तक के और जयदेव का गीतगोविन्द गेयमुक्तक के उदाहरण हैं। पद्यों की संख्या के अनुसार भी मुक्तक के अनेक भेद हैं जैसे एक पद्य की स्फुट कविता मुक्तक, दो पद्यवाली युग्म या सन्दानितक, तीन पद्यवाली विशेषक, पाँच पद्यवाली कलापक, पाँच से बारह या चौदह तक कुलक, शत पद्यवाली शतक आदि ।
महाकाव्यों के प्रकार-पाश्चात्य समीक्षाशास्त्रियों ने महाकाव्य के दो रूप स्वीकार किए हैं : १. संकलनात्मक महाकाव्य ( Epic of growth ) और २. अलंकृत महाकाव्य । संकलनात्मक वे विकसनशील महाकाव्य हैं जिन्हें अनेक विद्वानों ने समय-समय पर सजाया, सम्हाला, परिवर्धित किया है और युगों के बाद उनका वर्तमान रूप प्राप्त हुआ है। वे प्राचीन कुछ गाथाओं के आधार से पल्लवित हुए हैं। उदाहरण के रूप में रामायण और महाभारत के नाम आते हैं।
अलंकृत महाकाव्य की रचना व्यक्ति विशेष द्वारा की जाती है। इसमें कवि कलापक्ष और भाषा-शैली की सुन्दरता पर विशेष ध्यान रखता है। अलंकृत महाकाव्यों का प्रादुर्भाव रामायण और महाभारत के पश्चात् ही हुआ है । इनमें उन दोनों की स्वाभाविकता नहीं पाई जाती। इनमें कलात्मकता, कृत्रिमता की ओर विशेष झुकाव है । अलंकृत महाकाव्यों के कथानकों और शैली पर रामायण और महाभारत का प्रभाव भी प्रायः देखा जाता है इसलिए उन्हें अनुकृत महाकाव्य भी कहते हैं।
जैन काव्य साहित्य में विकसनशील महाकाव्य नहीं है। अलंकृत या अनुकृत काव्यों का ही बाहुल्य है । अलंकृत महाकाव्यों को शैली की दृष्टि से तीन भेदों में
१. जैनों के विशाल कथाकाव्यों ( कथासाहित्य ) का विवेचन महाकाव्यों के
वर्णन के बाद दिया जा रहा है।
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