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प्रास्ताविक
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काव्य के रूप में छन्दोयोजना से रहित तथा काव्य के आवश्यक गुणों से संयुक्त रचना को गद्य काव्य कहा जाता है। गद्य काव्य को आख्यायिका और कथा इन दो भेदों में विभक्त किया गया है। आख्यायिका वह है जिसमें कोई धीरोदात्त नायक अपने जीवन वृत्तान्त को अनेक रोमांचक तत्वों के साथ अपने ही मुख से अपने मित्रादि को बताये। संस्कृत के हर्षचरित जैसे ग्रन्थ आख्यायिका के अन्तगत माने गये हैं। कथा उसे कहते हैं जिसमें कवि स्वयं नायक के जीवन वृत्तान्त का वर्णन गद्य में करे। इस वर्ग में दशकुमारचरित्र, कादम्बरी आदि आते हैं ।
पद्य काव्य छन्दोबद्ध रचना को कहते हैं। पद्य काव्य के दो भेद होते हैं: १. प्रबन्ध काव्य और २. मुक्तक काव्य । प्रबन्ध काव्य में एक कथा होती है
और उसके सभी पद्य एक दूसरे से सम्बद्ध होते हैं। प्रबन्ध काव्य में वर्णन, प्राक्कथन, पारस्परिक सम्बंध और सामूहिक प्रभाव की प्रधानता रहती है। जिनसेन के अनुसार 'पूर्वापरार्थघटनैः प्रबंधः' अर्थात् पूर्वापर सम्बन्ध निर्वाहपूर्वक कथात्मक रचना प्रबन्ध काव्य है। मुक्तक काव्य के पद्य स्वतः पूर्ण होते हैं। उसमें प्रायः प्रत्येक पद्य की स्वतंत्र सत्ता रहती है। स्फुट कविताएँ इस विधा के अन्तर्गत आती हैं। सुभाषितों और स्तोत्रों के रूप में यह विधा अभिप्रेत है।
प्रबंध काव्य दो रूपों में पाया जाता है : १. महाकाव्य और २. कथाकाव्य । महाकाव्य में जीवन का सर्वांगीण चित्रण होता है और वह सबद्धरचना है और उसका आकार भी बृहत् होता है। जिनसेन के अनुसार महाकाव्य वह है जो इतिहास और पुराण प्रतिपादित चरित का रसात्मक चित्रण करता हो तथा धर्म, अर्थ और काम के फल को प्रदर्शित करता हो । कथाकाव्य वह है जिसमें रसात्मक एवं अलंकार शैली में रोमाञ्चक तत्त्वों के समावेश के साथ कथावर्णन हो । यह छन्दोबद्ध रचना होने से आख्यायिका और गद्य कथा से भिन्न है पर तत्त्वों की दृष्टि से एक है । हेमचन्द्र ने कथाकाव्य के आख्यान, मन्थलिका, परि. कथा, उपकथा, सकलकथा, खण्डकथा आदि अनेक भेदों का वर्णन किया है। इनमें से दो प्रमुख हैं : १. सकलकथा और २. खण्डकया। सकलकथा काव्य में महाकाव्य की तरह जीवन के पूर्ण भाग का चित्रण होता है। इसका कथानक विस्तृत होता है और इसमें अवान्तर-कथाओं की योजना भी होती है परन्तु महाकान्यीय बन्धनों (सर्गबद्धता, छन्दप्रयोग, भाषा की गुरुता आदि) के अभाव में सकलकथाकाव्य, महाकाव्य से भिन्न विधा है। जैनों के अधिकांश .. मादिपुराण, १.१००. २. वही, १.९९.
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