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________________ ३६२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास शत्रुञ्जयमाहात्म्य पर एक अज्ञातकर्तृक व्याख्या तथा रविकुशल के शिष्य देवकुशलकृत बालावबोध टीका सं० १६६७ में लिखी मिलती है।' इसी माहात्म्य का संक्षिप्त रूप सं० १६६७ में खम्भात के महीराज के पुत्र ऋषभदास ने शत्रुञ्जयोद्धार' नाम से लिखा था और धनेश्वरसूरि की कृति को ही आधार बनाकर शत्रुञ्जयमाहात्म्योल्लेख काव्य १५ अध्यायों में सरल संस्कृत गद्य में सं० १७८२ में हंसरत्न ने लिखा । हंसरत्न तपागच्छ की नागपुरीय शाखा के न्यायरत्न के शिष्य थे। ___ शत्रुञ्जयतीर्थ के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि के पट्टधर शिष्य कक्कसूरि ने सं० १३९२ में शत्रुञ्जयमहातीर्थोद्धारप्रबन्ध' की रचना की है। इसका अपरनाम नाभिनन्दनोद्धारप्रबन्ध भी है। यह एक ऐतिहासिक महत्त्व की रचना है। इसका परिचय हम पहले दे चुके हैं। एतद्विषयक अन्य रचनाओं में जिनहर्षसूरिकृत शत्रुञ्जयमाहात्म्य', नयसुन्दर का सं० १६३८ में निर्मित शत्रुञ्जयोद्धार तथा तपागच्छ के विनयन्धर के शिष्य विवेकधीरगणि द्वारा सं० १५८७ में रचित शत्रुञ्जयोद्धार अपरनाम इष्टार्थसाधक उल्लेखनीय हैं। शत्रुञ्जयतीर्थ सम्बन्धी अनेक कथाओं का संग्रह शत्रुजयकथाकोश है जो धर्मघोषसूरिकृत शत्रुञ्जयकल्प पर १२५०० श्लोक-प्रमाण वृत्तिरूप में शुभशीलगणि ने सं० १५१८ में बनाया है। शुकराजकथा-शत्रुजयतीर्थ के माहात्म्य को एक और रीति से प्रकट करने १. जिनरस्नकोश, पृ० ३७२. २. वही, पृ० ३७३. ३. वही, पृ० ३७२. ४. वही. ५. वही. ६. वही, पृ० ३७३. ७. वही; जैन भारमानन्द सभा, भावनगर, सं० १९७३. ८. वही, पृ० ३०१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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