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कथा-साहित्य
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के लिए शुकराजकथा' की रचना भी कुछ आचार्यों ने की है। इसमें क्षितिप्रतिष्ठितपुर के राजकुमार शुकराज की कथा है जो विमलगिरि पर जाकर मंत्रसाधनकर शत्रु को जीतनेवाला - शत्रुञ्जय हो गया था तभी से उक्त तीर्थ का नाम शत्रुञ्जय पड़ गया : शुकस्तत्र गत्वाऽत्र मंत्रसाधनेन शत्रुन्जयोऽभूदिति महोत्सवं कृत्वा विमलगिरेः शत्रुञ्जय इति नाम प्रख्यापयामास ।
कर्ता एवं रचनाकाल - इसकी रचना अञ्चलगच्छीय मेरुतुंग के शिष्य माणिक्यसुन्दर ने ५०० श्लोकों में की है। माणिक्यसुन्दर बड़े अच्छे कवि थे । इनकी अन्य रचनाएँ चतुः पर्वोचम्पू, श्रीधरचरित्र ( सं० १४६३), धर्मदत्त - कथानक, महाबलमलय सुन्दरीचरित्र, अजापुत्रकथा, आवश्यकटीका, पृथ्वीचन्द्रचरित्र (प्राचीन गुजराती, सं० १४७८ ) और गुणवर्मचरित्र (सं० १४८४) हैं ।
शुकराजकथा-विषयक अन्य कृतियाँ शुभशीलगणि ( १६वीं शती का पूर्वार्ध) कृत तथा कुछ अज्ञातकर्तृक' भी मिलती हैं ।
सुदर्शनाचरित - भड़ौच ( भृगुकच्छ ) के शकुनिकाविहार- जिनालय के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए सुदर्शना की कथा पर ज्ञातकर्तृक दो प्राकृत रचनाएँ, एक संस्कृत रचना तथा एक अज्ञातकर्तृक प्राकृत रचना मिली हैं ।
अज्ञातकर्तृक प्राकृत रचना की हस्तलिखित प्रति सं० १२४४ की मिली है । कुछ विद्वानों का अनुमान है कि यही पश्चाद्वर्ती कृतियों का आधार रही है।
द्वितीय रचना भी प्राकृत में है । इसके रचयिता मलधारी देवप्रभसूरे (तेरहवीं शती का उत्तरार्ध) हैं। यह १८८७ श्लोक-प्रमाण प्रन्थ है । तृतीय रचना का परिचय कथा के साथ दे रहे हैं । चतुर्थ रचना संस्कृत में किन्हीं माणिक्यसूरिकृत सुदर्शनाकथानक है ।
सुदंसणाचरिय— इसका दूसरा नाम शकुनिकाविहार भी है । यह एक प्राकृत ग्रन्थ है जिसमें कुल मिलाकर ४००२ गाथाएँ हैं । बीच-बीच में शार्दूलविक्रीडित आदि छन्दों का प्रयोग हुआ है। इसमें घनपाल, सुदर्शन, विजयकुमार,
१. जिनरत्नकोश, पृ० ३८६; हंसविजय जैन फ्री लाइब्रेरी, ग्रन्थांक २०,
सं० १९८०. २. वही.
३. वही, पृ० ४२४.
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