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________________ ३६० जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भिक्षुओं के पारस्परिक कलह का आभास मिलता है। इसमें सुभद्रा के शीधर्म का अच्छा निरूपण है । यह कथानक कथाकोषप्रकरण ( जिनेश्वरसूरि ) में भी आया है | अज्ञातक प्रस्तुत रचना १५०० ग्रन्थाग्र प्रमाण है । अभयदेव की सं० १९६१ में रची अपभ्रंश रचना का भो उल्लेख मिलता है । ' अन्य नारी पात्रों पर जो कथाएँ मिलती हैं वे इस प्रकार हैं- अभय श्रीकथारे, जयसुन्दरीकथा", जिनसुन्दरीकथा (शील पर ), धव्यसुन्दरीकथा' (प्राकृत), नागश्रीकथा, पुण्यवतीकथा', पुष्पवतीकथा, मंगलमालाकथा", मधुमालतीकथा", रतिसुन्दरीकथा", रत्नमंजरीकथा", रसमंजरीचरित्र", शान्तिमती कथा ५, सूर्ययशाकथा", सोमश्रीकथा", सौभाग्यसुन्दरी कथा", हंसावली कथा", हरिश्चन्द्रतारालोचनीचरित", पद्मिनीचरित्र", मगघसेनाकथा २, मदनावलिकथा, मदनधनदेवीचरित" | ૨૪ तोर्थमाहात्म्य-विषयक कथाएँ : तीर्थों के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए अनेक कथाकोश और स्वतंत्र काव्यों का भी निर्माण किया गया है । इनमें सबसे प्राचीन धनेश्वरसूरि का शत्रुंजयमाहात्म्य है । इसे रैवताचलमाहात्म्य' भी कहते हैं । بات शत्रुंजयमाहात्म्य – यह हिन्दू पुराणों में लिखा गया है । यह एक महाकाव्य है जिसमें में हैं । इसका प्रारम्भ संसार के अद्भुत कार्य और फिर प्रथम जिन मिलनेवाले माहात्म्य-शैली पर १४ सर्ग हैं जो प्रायः श्लोकों वर्णन से होता है, फिर राजा महीपाल के ऋषभ की कथा दी गई है । इसमें भरत Jain Education International १. जिनरत्नकोश, पृ० ४४५. २. वही. ३. जिनरत्नकोश, पृ० १३. ४. पृ० १९७. ७. वही, पृ० २१०. १०. वही, पृ० २९९. ११. वही, पृ० पृ० ३२७. १४. वही, पृ० ३२९. पृ० ४५२. १८. वही, पृ० ४५३. ४६०. २१. वही, पृ० ३३६. पृ० ३००. २५. वही, पृ० ३३३, ३७२; हीरालाल हंसराज, जामनगर, १९०८. वही, पृ० १३४. ५. वही, १३८. ६. वही, ८. वही, पृ० २५१. ९. वही, पृ० २५४. ३०० १२. वही, पृ० ३२६. १३. वही, १५. वही, पृ० ३८१. १६ - १७. वही, १९. वही, पृ० ४५९. २०. वही, २२. वही, पृ० २९९. २३-२४. वही, पृ० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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