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जेन साहित्य का बृहद् इतिहास कुशलरचित रोहिण्यशोकचन्द्रनृपकथा' तथा रोहिणेयकथा का परिचय व्रतकथाओं के प्रसङ्ग में दिया गया है।
चम्पकमालाकथा-सुपासनाहचरिय में सम्यक्त्व-प्रशंसा में चम्पकमाला का उदाहरण आया है। उक्त कथानक को लेकर स्वतंत्र कथाग्रन्थ की रचना की गई है। चम्पकमाला चूडामणिशास्त्र की पण्डिता थी और इस शास्त्र की सहायता से जानती थी कि उसका कौन पति होगा तथा उसके कितनी सन्तान होंगी।
इसकी रचना तपागच्छीय मुनिविमल के शिष्य भावविजयगणि ने सं० १७०८ में की थी। भावविजय की अन्य रचनाओं में उत्तराध्ययनटीका (सं० १६८१) तथा षट्त्रिंशत्जल्पविचार मिलते हैं । ___ दूसरी रचना २०वीं शती के तपागच्छाचार्य यतीन्द्रसूरि ने संस्कृत गद्य में चम्पकमालाचरित्र लिखा है। इसका रचनाकाल सं० १९९० है ।
कलावतीचरित-शील के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए कलावती के चरित्र संस्कृत-प्राकृत दोनों प्रकार की रचनाओं में मिलते हैं । अज्ञातकतृक प्राकृत कलावतीचरित्र की एक हस्तलिखित प्रति में सं० १२९१ दिया गया है। संस्कृत श्लोकों में निबद्ध अज्ञातकर्तृक कलावतीकथा भी मिलती है।
कमलावतीचरित-इसमें मेघरथ नृप और रानी कमलावती का चरित्र दिया गया है। राजा-रानी संसार से विरक्त हो जाते हैं पर रानी कमलावती अपने दुधमुंहे बच्चे के कारण २० वर्ष घर में शील पालनकर पुत्र को गद्दो पर बैठा दीक्षा ले लेती है। इस पर संस्कृत में एक अज्ञातकर्तृक रचना मिलती है। गुजराती में विजयभद्र (१५वीं शती) कृत कमलावतीरास मिलता है।"
कनकावतीचरित-इसे रूपसेनचरित्र भी कहते हैं। इसमें रूपसेन नृप और रानी कनकावती का आख्यान वर्णित है। संस्कृत में जिनसूरिरचित १. जिनरत्नकोश, पृ० ३३४. २. वही, पृ० १२१; जैन भात्मानन्द सभा, भावनगर, सं० १९... १. यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ, पृ. ४२. ५-५. जिनरत्नकोश, पृ० ७४. १. वही, पृ० ६७. .. जैन गुर्जर कविमो, भाग १, पृ० १४.
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