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गुणसुन्दरीचरित - इसमें पुण्यपाल राजा की रानी गुणसुन्दरी के शील का अद्भुत वर्णन है । इसे पुण्यपालराजकथा भी कहते हैं।' इसकी प्राचीन प्रतियाँ सं० १६५८ और १६७६ की मिलती हैं । कर्ता का नाम ज्ञात नहीं है । इस पर गुजराती में जिनकुशलसूरि ने सं० १६६५ में गुणसुन्दरीचतुष्पदी की रचना की है ।' गुजराती में अन्य रचनाएँ भी हैं ।
कथा-साहित्य
पद्मश्रीकथा यह प्राकृत में ३१८ ग्रन्थाम- प्रमाण लघु कथा है। इसमें नायिका पद्मश्री अपने पूर्वजन्म में एक सेठ की पुत्री थी, जो बालविधवा होकर अपना जीवन अपने दो भाइयों और उनकी पत्नियों के बीच एक ओर ईर्ष्या और सन्ताप तथा दूसरी ओर धर्म साधना में बिताती रही। दूसरे जन्म में पूर्व पुण्य के फल से राजकुमारी हुई। किन्तु जो पापकर्म शेष रहा था उसके फलस्वरूप उसे पति-परित्याग का दुःख भोगना पड़ा तथापि संयम और तपस्या के बल से अन्त में उसने केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षपद पाया ।
इसके कर्ता एवं रचना का समय अज्ञात है। इस कथा पर अपभ्रंश में कवि घाहिलकृत पउमसिरिचरिउ मिलता है । "
रोहिणीकथा - नारी पात्रों में रोहिणी की कथा विभिन्न रूपों में प्रस्तुत की गई है । उपदेशप्रासाद में तीन विभिन्न रोहिणी नारियों की कथा दी गई है । एक त्रिकथा पर दूसरी रोहिणी व्रत का प्रवर्तन करनेवाली तथा तीसरी सती की कथा | शुभशीलगणिकृत भरतेश्वर बाहुबलिवृत्ति में रोहिणी सती की कथा दी गई है ।
स्वतंत्र रचनाओं के रूप में प्राकृत में एक कृति १३४ गाथाओं में रूपविजयगणिकृत, दूसरी अज्ञातकर्तृक चार प्रस्तावों में तथा तीसरी का उल्लेख नन्दिताढ्य के गाहालक्खण में रोहिणी चरित्र के रूप में मिलता है । संस्कृत में भानुकीर्ति और नरेन्द्रदेव' की रचनाओं का उल्लेख किया गया है । अज्ञातकर्तृक" कुछ रोहिणीकथाएँ और रोहिणीचरित्र भी उपलब्ध हुए हैं। कनक
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१. जिनरत्नकोश, पृ० १०५, २५१.
२. वही, पृ० १०५.
३. वही, पृ० २३४.
४. सिंघी जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित.
५- १०. जिनरत्नकोश, पृ० ३३३.
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